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APPENDIX III.
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चरनचित नियै ॥ कबू के कटत पाप दुष सिकत पढ़त गुन अनंद सुरपुर सुख सानियै ॥ ४२ || CTET || वर्न व्यौहार मुरार के बरने का विस्तार ॥ कथत जीव बीते वरष नान पावैपार ॥ इति श्री मदन मुरार लोला ग्वालनी कृष्ण ग्वाल नी यशोधा संभाषण वर्णन कवित बंद संपूर्ण ॥
Subject. - श्री कृष्ण का ग्वालिनों के संग माखन और दधि दान के लिये रार करना, ग्वालिनों का यशोदा को उलाहना देना, और ग्वालिन यशोदा और यशोदा कृष्ण का परस्पर समझाना |
No. 28. Hari Charitra. Substance-Country-made paper. Leaves-302. Size - 9 x 7 inches. Lines per page-11. Extent - 7000 Slokas. Incomplete. Appearance—Old. Character — Nagari. Place of Deposit - Pandita Dūbara Śukla Vaidya, P. O. Śahazadapur (Faizabad).
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Beginning. — ( खण्डित ) - नवें पृष्ठ से आरंभ यदि मुख कर गोर निज धावें । मरतिहुँ बार पुनि राम कहावै ॥ जा कह नयन प्रान मुन दीजै । अंत आस राम की कीजे ॥ यहि ठाकुर को कीजै सेवा । सर्व देव देवन के देवा ॥ पाखंड धर्म क मुने विशेष कहे को दीन जन लालच देख ॥ अन जनन जनु में विप वाव । भाजि संत सरनागत प्राव || सब संतन पसि बुद्ध उपाई । राम नाम अमृत रस पाई || सागर उतरत वारन लागो । सत्यराम जा देवइ जागो ॥ तो हरि भगति भ भुउ में आई । त्राहि त्राहि जगदीश गुसाईं || प्रस्तुति करहिं देव सब मुनि जन जोर हाथ ॥ सुन कलत्र जन लालच वलि वालिज दे। नाथ । इति श्री हरिचरित्रे दशम स्कंधे महापुराणे श्रीभागवते गर्भस्तुति वर्णनेा नाम द्वितीयोध्यायः ॥
End.—मारु भोम सव सैन्य अपारा। हारि कुवारी पाप के भारा ॥ तव विवाह विधिवत् सब कैउ । लै माहि कन कोती पाह गेउ || राय दुधिप्टिल वात जनाई । हु पर सदा कछु भोळ्या पाई ॥ कुंतो असि आग्या दीहु अन जान मन माहु जानि वस्तु ले यहु पांचौ मिलि बाहु इति श्री हरिचरित्रे दशम स्कंधे महापुराणे श्रीभागवते रुक्मिणी द्रौपदी संवाद नाम चौरासियोऽध्यायः ॥ ८४ ॥
Subjcot — श्रीमद्भागवत दशम स्कंध की कथा - (द्वितीय अध्याय - गर्भ स्तुति से रुक्मिणी द्रौपदी संवाद - चौरासी प्रध्यायों की कथा ।)
Note - ग्रंथकर्त्ता और ग्रंथकर्त्ता के कालादि का पता न चल सका । हरिचरित्र नाम का एक मोर ग्रंथ नोटिस में या चुका है। पर वह ग्रंथ वर्त्तमान. प्रतिवाले ग्रंथ से बहुत छोटा है ।