________________
430
APPENDIX III.
कीया पुन्य हाई सेा जेष्ट मांसे कीसन पछेता येकादसी कीया पुन्य होई ॥ ईति ब्रह्माडपूराणे ज्येष्ट मार्से कीसन पछे अपरा येकादसी समाप्त ॥ २ ॥
Subject. – १२ मासों की एकादशी कथा का गद्य में वर्णन । Note. - पुस्तक अपूर्ण है ।
No. 23. Ganesa Chaturthi ro Vrata. SubstanceCountry-made paper. Leaves-6. Size-5" x 4". Lines per page-11. Extent-51 Ślōkas. Appearance - Old. Character-Nagari. Place of Deposit-Chandra Sēna Pujäri, Gangā ji kā Mandira, Khurja (Bulanda sahar).
Boginning.--श्रीगणेश चत्रथो से वरत लोपेते ऐक समै रे विषै x रोज कृत वीर्जः श्री ब्रह्मा सु पुछे । हे ब्रह्मा न गणेश चत्रधी रो व्रत के कीया प्रथो में विषे कै प्रकास कीयेो ॥ तोकै रा पुन कासु फल कासु थे दया कर कहा ॥ १ ॥ तट श्री ब्रह्मा जी राजा सूया कर प्रसंन हुई कहे छे हे राजनः पुर पूर्व स्वांम कार्त्रीकिजी गयांथ कां पारवती श्री महादेवजी है वा यक सुमास पारताई व्रत कोया तद पुत्र प्राप्त हुई || २ || पांच मासि विषे स्वाम कार्तिक जी स्त्री सहित आय मिलीयाः फेर राजा अगस्ति जी है समुद्र पीवणारी वांच्छ्या हुई तद चिन्तातुरथ कारी बांरो अग्या सूव्रत कोयेाः ॥ ३ ॥ फिर नल दमयंती नु विषोप star दुहं त्री पुरष । वियोग हुवा तद दमयंती मास ६ छय तांई बत कोयो गणेशजी पुजन कीयेाः ॥ नल भरतार नू पायाः ॥ ४ ॥ पुरा पूर्व श्री कृष्ण जी
पोतरो अनुरुध प्रदमन रो पुत्र चित्रलेषा लेषा ले गई तद श्री रुकमणी जी ओर सारा यादव चितातुर हवाः अनेक प्रकार रा जतन कोयाः पण पवर काई नहीः तद रुकमणी जी को म्हारेपण पुत्र नु दीन दसमाह सुंदर ले गये। थाः तदहू पण सेा कार्त्र थका हुई थी लंका रा बालक देष जांखै कतीई सेा पुत्र म्हारो थाईये तर चितातुर थको सेाक करां छः तिकै समै लामस जी आया तद लामसजी राघो श्रुश्रूषा कीवोः ।
End.—अंत समै परम पद पाया ज्या और पण नर नारी ओ व्रत करैः गणेश जो पूजा करे तो सारा मनोरथ रा फल पावे जाई यै माहात्म आपरी प्रीत सु करै सुतिकै सारा यज्ञा रा व्रत रेरा फल पावै ॥ इती श्री गणेश चतुरथी व्रतकथा संपूरण श्री कालमस्तु ।
Subject. - गणेश चतुर्थी व्रत कथा ।
Noto.—गंध पुस्तक की भाषा मारवाड़ की प्रतीत होती है ।