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APPENDIX III.
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End.-टीका । जिसका पति परदेश के गया हे स्त्री पति के वियोग से काम करके बेहात संतप्त हे वो गर्मी दूर होने के वास्ते कपूर चंदन सरीर को लगाना चंद्रग के चदने बेठना कमल शरीर को लगाना ॥ इत्यादिक थंडे इलाज करने से भी उलटा काम बढ़े उसको विरहिणी कहते हैं ॥ स्वाधीन पूर्वपतिका श्लो० । वैगग्य वत्स कल केलि कनी क ना सुकांता जहाति न सकाशमनंग लोल्यान् ॥ यस्याः स्त्रियः सुरत सौख्य विंव चिता मा स्वाधीन पूर्व पतिकेति वुधैः प्रदिष्टा ॥ टी विलाप के सब कोड़ा विषय में पती विरक्त हो गया और स्त्री को छोड़ गया ऐपो जो स्त्री जिमने मैथुन का सुख नहीं पाया अगर जिमके पती का मैथुन के पेन्तर रेत खलित होता है उसका नाम हे ॥
Subject.-काक शास्त्रपृ० १ द्रावणादि औषधि विषय। पृ. २४ वशीकरणादि के उपाय ।
३५ कन्या के गुण । पृ ३९ सामुद्रिक वर्णन । पृ० ४६ परस्त्रागनन न करे इसके कारणादि ।
पृ०५६-८० संभोग प्रकरण । No. 6. Arati Mangala Sangraha. Substance-Countrymado paper. Leaves --37. Size-10" x 5". Liues por page-8. Estent-450 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of Manuscript-Sainvat 19:29 or A. D. 1872. Place of Deposit-The Hindi Sāhitya Samiti, Bharatapur State.
Beginning:-श्रीमते रामानुजाय नमः॥ अजुध्या आजु सनाथ भई हे ॥ टेक ॥ गजा दशरथ जी के राम जी जन्म लोय। हर तन नभु मिम ही है (॥) होरा लाल सजडे पत्नन मैं झुनत राम सही है ॥ कंचन महल वने दशरथ के सरजू निकट वहो है ॥ पब सषियां मिलि मंगल गाव गावत राग सहो है ॥ २॥ राजा दशरथ के चारि पुत्र है लछिमन राम महो है (1) गजा दशरथ घर नावित बाजे लंका मैं षबरि भई है ॥ ३ ॥ गुरुवसिष्ठ कुलपूज्य हमारे मांगत दान सही है (|) तुल पोदास निधन कौसल्या मनसा सफन भई है ॥ ६ ॥ भक्ति सकल सुखदानो श्री राघव जो को ॥ महा मुलभ मुभ हित चिंतामणि वेद पुराण बखानो ॥ टेक ॥ महाराज रघुवर दशरथ मुत जनक सुता महारानो ॥ सवत संत विमल जस गावें अवधि पुरो रजधानो ॥१॥ शिव नारद प्रहलाद विभोषण हनुमान उर पानी ॥ जानकी वलभ क्रपा विलानि ॥ श्री राम सेवक मनमानो ॥ २॥ . .