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________________ 402 APPENDIX II. x 6". Lines per page-12. Extent-105 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of ManuscriptSamvat 1824 or A. D. 1767. Place of Deposit-Pandita Rama Gõpāla ji Vaidya, Jahāngirābād, Bulandasahar. ___Beginning.- अथ नेमनाथ राजल विवाह कवितवद लिष्यते ॥ सवैया तेईसा २३ ॥ पक समै जु समुद्र विजै द्वारिका मध्य नेम को ब्याह रच्यैा है ॥ गावै मंगल चार बधु दिल में सब ही के उछाह मच्यो है ॥ तेल चढ़ावन कुं जुवती अपने अपने कर थाल मच्यो है नेग करै सव ब्याहन को घर मंदिर चित्र विचित्र पच्यौ है ॥ १ ॥ नेम कुवर को ब्याह रच्यो तब कृष्ण जु आनि बरात बनाई ॥ जादों छप्पन कोटि जुटे रथ साजते एक ते एक सवाई ॥ झूमत भूल जरावन को गज रंग तुरंग सुरंग हवाई ॥ बाल सबै सुष पालन पै बहु लाल निसान रहे फहराई ॥ २॥ वाजन कोटि नगारे युटै और गुंजत है सुग्तै सुरनाई ॥ ताल मृदंग अपार जुटे चीपा नाचत है मनु मैन की जाई ॥ प्रातसवाजी चिराग वने बहु छूटत है हथफूल हवाई ॥ लाल विनोदी के साहब को मुष देषन को दुनिया सब धाई ॥३॥ सिर मोड़ धरौ दिल दुल्लह को कर कंकन बांध दई कस मारी॥ कुंडल कानन मौ भनकै अति भाल मैं लाल विराजत गरी ॥ मोतीन की लर साहत है कवि देषि लगै गन को पति थेारी ॥ लाल विने दी कै साहब को मुष देषन को दुनिया सव दोरी ॥४॥ End -तव राजमति हठयोग लोया गिरि पैसगरी सखियां संगही । तहां पाले अणेब्रत दुधर संयम काल कीयो सुभ ध्यान तही । तिहां सोलह सुर्ग में देव भई जहां वाईस सागर प्राव लहो ॥ जहां के सुष भोग के लाल कहै फिर कंत को जाय मिलेगी सहो ॥ अब नेम करै तप योग दोया दिन छप्पन लों छदमस्त रह्यो । तब केवल ग्यान भयो प्रभु को प्रतिहारज अष्ट विभूत लह्यो । वहां सात सै वर्ष बिहार कीयौ उपदेश तै धर्म महानु मह्यौ । निर्वाण भये मुनि पांच सै छतीस संग जाय विनोदी लान कह्यौ ॥ २४ ॥ इति गजन नेम कवित्त विवाह संपूर्ण ॥ संवत १८२४ मार्गसिर सुदी ८ रवि दिने । Subject.-राजा उग्रसेन की पुत्री राजल और नेम कुवर का ब्याह वर्णन। इसको कथा संक्षेप में यह है कि विवाह के समय पाणिग्रहण के पहले हो संसार से विरक्त हो नेम ने सन्यास धारण किया। यह वात राजल को मालूम हो गई। प्रतएव उसने भी अपने पति का अनुगमन करना निश्चय कर लिया और माता पिता के बारम्बार मना करने और समझाने पर भी वह अपने दृढ़ संकल्प से न हटी और उसने भी सन्यास धारण कर लिया ।
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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