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________________ 400 APPENDIX II. No. 202(a). Paramārtha Gārī by Vinodi Lāla. Substance-Country-made paper. Leaves-3. Size-5" + 5". Lines per page-12 Extent-45 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of CompositionSamvat 1747 or A. D. 1690. Place of Deposit-Pandita Rama Göpāla Vaidya, Jahāngirābād, Bulandasahar. ___Beginning.-अथ परमारथ गारो लिष्यते ॥ प्रथमहि सुमति जिने मुर वंदा। ग गण धरहि मनाउ वे। सादर देय सरस मति माकं गुन समवनि के गाऊं वे ॥ १ ॥ गारी पक सुना तुम चेतन । सुनत श्रवण सुषदाई वे ॥ तुम्हगे कुति बुरै ढंग लागी ममत नहि समझाई वे ॥ २॥ प्रति प्रचंड दागे भई डोलत यौवन की मतवारी वे। पंचन सै दारी रितु मानत कानन करत तुम्हारो वे ॥३॥ कोध लोभ दानु जन पोटे जार बुलावन हारा वे घर घर प्रोति करत हैं लंगर मन फुसलावन हारी वे ॥ ४॥ उन तो लाज तजो परवर की जाँगनि काज गदारी वे। आव कर्म की बहन कहावत अपजस को महतारो वे सात बिमन का दूती चंचल्न चेतन नारि तुम्हारि वे ॥ ५॥ तुम ता है। त्रिभुवन के नायक पटत्तर कोन तिहारी वे। और कहा परगट हाइ वरना दंपे। मनहि बिचारि वे ॥ ६॥ ताके संग कहा तुम डोलत कलह दिवावत गारो वे भटकत फिरत चहुं गति भीतर लाज जुवा सी हारो वे ॥ ७ ॥ कबहुंक भेष चरत भूपति का कवडंक होत भिषारी वे ॥ कबहुंक हय गय रथ चढ़ि निकसत कबहुंक पीठ उघारी वे ॥ ८ ॥ कबहुंक टेढ़ी पाग वनावत कबहुँ दिगंवर धारी वे कबहुंक शील महाबत पालत कबहुं तकत पर नारो वे ॥९॥ कबहुंक हात इंद पूनि चको। कबहुंत विद्या धागेव। कबहुंक कामदेव पद पावत कबहुंक कुष्ट विकारी वे ॥ १० ॥ End.-कबहुं सालह स्वर्ग विराजत कबहुं नरक अवतारी वे । कवहुंक नर पसु तिसथावर कवहुंक सुडांधागे वे ॥ ११ ॥ नर ज्यों भेष धरे बहुतेरे सेा गति भई तिहारी वे। चारासी लष जोन मे फिरत तुम । कबहुं न सरति संभारो वे ॥१२॥ जासो प्रकृति मिलै नहि कबहूं तासा कैसी यारी वे वह तो है बारेगी बिगरो अब क्यों जात सुधारी वे ॥ १३ ॥ छांडो संग कुमति गनिका को। घेर देह निकारी वे ॥ ब्याहै। सिद्ध बधु सी वनता और निबाहन हारी वे॥१४॥ आश्रव छाडि गही नित संबर तजा परिग्रह भारी वे। पकाको होय रहै। चितानंद मानौ सीष हमारी वे ॥ १५॥ दस विधिधर्म कहा जिन नायक राषौ चित्त करारी वे। षोडस कारण भावना भावा मंत्र जपो न बकारी वे ॥ १३ ॥ तीन रतन को हार बनावा सा अपने उर धारी वे श्रावक ब्रत त्रेपन विधि पालौ जनम जनम हितकारी वे ॥ १७ ॥ प्राज समा हाली को चेतन ऐस करी मति भारी वे इने कहे
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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