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APPENDIX II.
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सर्वत्र ॥ श्रेयांस्तु लेखक पाठक श्रोतृणां सदा सर्वथा सर्वत्र ॥ श्री दिलीपरंजिनी शुभदायिनी कल्याणदायिनी रिद्धिसमृदिदायिनो भूयात् ॥ श्री मन्नृपतिवर विक्रमादित्य राज्यात् संवत् १८९१ विसाख बदि तिथि सपतमि बुधवासरे पृष्ठे २० लिखतं भटभिषा सुभः ॥ सवैया॥ पता दान दीनो मोहि चक्कवै दिलोप सिंह भये हम सुखी नाहि जैये पान द्वार में आऐ सनमान दोनों पंचन में मान दोनो आदर सा दान दोनों राखे सदा मान में काश्मीरी साल दोनो कंकन वो माल दोनो हाथ को अंगूठी दोनो बिदा कीना सनमान में बारह महाभाटी दीनों रूपे साज घोरा दीनो जोरा जरकसो दोनो मतो दोनो कान में ॥ ११ ॥ राजा स्वस्ति प्रजा स्वस्ति दे स्वस्ति तथैव च। यजमान गृहे स्वस्ति गोब्राह्य णेषु च ॥१॥ यादृशं पुस्तकं दृष्टा तासं लिखितं मया यदि शुदमशुद्धं वा मम दापो न दीयते ॥ १ ॥ दिलीप.रंजिनी समाप्तं ॥ शुभम् ॥
Subject.-वंश वर्णन । पृ. १ वन्दना श्रीगणेश जी को । कवि का दिलीप सिंह से मिलना
और राजा का कवि से वंश वर्मन के लिये प्रार्थना करना।
दुर्जन नाम सजन नाम आदि । पृ. २ देवी को स्तुति । प्रथम उल्लास । पृ. २-८ त्रिगर्त राज्य वर्णन तथा भारियोत्पत्ति वर्णन । २य उल्लास । पृ. १२ मलाह सनौरिया महारियोत्पत्ति वर्णन । ३य सम्मुल्लास । पृ. १८ जसु आलोत्पत्ति वर्जन । ४र्थ सम्मुल्लास । पृ. २० हरिचन्द कर्म चन्दोत्पत्ति वर्णन । ५म सम्मुल्लास । पृ. २. हरिचन्दोपाख्यान, कुटोच, सरोचात्पत्ति वर्णन । षष्ठ सम्मुवास।
३३ राजा रूपचंद का वर्णन । ७म सम्मुल्लास। पृ. ४४ , मानसिंह , ८म " पृ. ५२ , विक्रम सिंह , म , पृ. ५९ , राजा सिंह , १०म ,
पृ. ६७ , दिलीप सिंह , ११श , ___Note.-काल । “संवत सत्रह सै बरस बीत्या साठि प्रमान । भाइ सुदि गुरुवार मैं कोनो वंश बखान ॥