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________________ 398 APPENDIX II. करत किलोल रीत न्यारी के ॥ जोबन के जोर लुक अंजन लगाये फिरै लाज को न लेस लोल लोचन बिचारी के ॥ नानी भैन मैासी माकी लाड़ली ही रहै सदा तात म्रात ग्राद ले हिमायत बिचारी के ॥ उरदाम पतेन की ओट मैं उड़ामैं मजा चूर कर डारै अद्धा प्रादपा सुपारो के ॥ ५३॥ इति श्री उरदाम प्रकाश संपूर्णम् शुभं भवतु कल्याणमस्तु । मिती आषाढ़ शुक्ल गुरुवार संवत १९४७ दः नीता चौधे के। Subject.-शृङ्गार रस के कवित्त ही विशेष रूप से मिलते हैं। कोई निर्दिष्ट विषय नहीं। इसे कवि का हृदयादगार भी कह सकते हैं । यह कवि शृङ्गार की प्रश्नील कविता लिखने में लाज धो बैठा है जैसा अन्त के कई पदों से विदित होगा । मालूम नहीं इस कवि का चरित्र कैसा रहा होगा। No. 201. Dilipa Ranjini by Uttama. Substance-- British paper. Leaves-67. Size--9" x 7". Lines per page -14. Extent-1,300 Slokas. Appearance--Now. Character-Nāgarī. Date of Coinposition-Samvat 1760 or A. D. 170:. Date of Manuscript-Samvat 1891 or A. D. 1834. Place of Deposit-The Provincial Museum, Lakhanaū. Beginning.- श्रीगणेशाय नमः ॥ छप्पै ॥ मूरत मंगल धाम धुरंधर भगत उधारन ॥ आदि सुता के तनय प्रलय तिहुँ लोक के तारन ॥ तचै तंज नहु पंड भुम्मि चतुर्दह चंदन ॥ विमल प्रकाशित सदय सदा गिरिजापतिनंदन ॥ उत्तम उदित उदार दुति उद्दीपत सब ठार पर ॥ हेरि सकल विधुवंस को विपुल विधन बिघनेशहर ॥१॥ दोहा ॥ वेद पुरान बिचारि कै कहैं पुरातन लोग लाष पाठ चौसठि है द्वापर युग के भोग ॥ २॥ सारठा ॥ कलियुग का परिवेश द्वापर भयो व्यतीत जब ॥ देवासुर संग्राम में कीन्हो देवी युद्ध तब ॥ ३॥ दोहा ॥ दिनननि रैनाराज गुरु विद्या सभै निधान ॥ तिन कवि उत्तम से बहुत करो दष्टा सन्मान ॥४॥दोहा॥ बहुत भांति प्रतिपाल के बहुत प्रीति उपजाय ॥ राज सिंह के नंद से दोनो बहुरि मिलाय ॥५॥राजसिंह के नन्द पनि कीन्हो अादर भाव । दीन्हों दान अनेक तिन कवि को उपजौ चाव ॥ ६॥ साहिब नृपति दिलीप हैं प्रगट विष्णु का अंश ॥ तिन कवि उत्तम से कही देहु बनि के वंश ॥ ७॥ ___End.-सवैया ॥ जब लौ नभमंडल चंद लसे जब लैी महिमा रविमंडल को ॥ जब लों यह सृष्टि रहे वसुधा जव लों प्रभु है ब्रह्म मंडन को ॥ तव ले कवि उत्तम देत हैं ग्रासिस कीजिये भोग अखंडल को ॥ सिंह दिनी चिरंजिव ह तुम राज करो महिमंडल को ।। ७६ ॥ इति उत्तम कवि विरचित यां दिलीप रंजिन्यां श्रो मत् श्री दिलीपसिंहोपाध्यान एकादशीलासः ॥ संपूर्ण ॥ शुभं भवतु सदा
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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