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APPENDIX II.
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की भुजानि में भरति हे ॥ ५० ॥ इति श्री गंगा लहरी दालति हित कृत उजियारे लाल कवि विरचितायां गंगालहरी समाप्तं संपूर्ण शुभं भवतु ॥१॥ राम राम राम ॥
Subject.-गंगा की स्तुति No. 200. Uradāma Prakāśa by Uradāma. SubstanceCountry-made paper. Leaves-30. Siz0-11" x 61". Linos per page-2(). Extent-600 Slokas. AppearanceOld. Character-Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1947 or A. 1). 1890. Place of Deposit-Kavi Navanita Chaubē, Mathurā.
Beginning.-उरदाम प्रकास, श्रीगणेशाय नमः ॥ अथ उरदाम प्रकास लिख्यते यथा छंद भ्रमत धुनी ॥ श्री मकर रमनी चरण कमन वरन धरि माय सुर रमनी कवरी कलित अमरी किल पथ पट ॥ नब्ध पधरि उर पाठः परि मंजरो कुणयुतः बोधः करण प्रबोधःवरण विरोधः विरि कृत ॥ मंद सरण अमंदः भरण सनंदः परवार ॥ गंग धरण नप दुनि तरणि जनः श्री संकर ॥१॥ दाहा ॥ चितवनि हास विलास जुत मिलन लीये लपटान ॥ सारह मु कवि दिन सये कला काम को जान ॥१॥ चाह चपलता वस्यता मेहनता कल जानः किन कनहि लटकन गहिनि ॥ महरन प्रति रसमान ॥२॥ नख महदी चौवा कुचन दांत नवीरी देखी ॥ सीस फूल्न वैदी वरन ओर अंगदहि लेखो ॥ ३॥ चुरी धारु चाटी गुहो माल्नि पत्र अनुपाहि ॥ तन पारसी पावड़े बारह पाभरण माहि ॥ ४॥ कवित ॥ वंदी वर बालक फटिक सम अंग जाकोः कुडिल कलित लोल लोचन विसाल है कवि उरदाम दिवा वसन विभूत अंग मणिमय किंकिनी कढ़त सर जाल है॥ चरन कमल जुग नूपुर विराजमान चार करि चांप खङ्ग शूल या कपाल है हास भरपो आनन अन्नक कुटिलाई भरे तीन नैन तरल बिराजै चंद्र भाल है ३ उरदाम नारथवली चलन निचांही मनमानत सचीही द्रग लखन निचाहो उर जानत उचा ही हैं उर ललचांही कछू रहत कचाही भांह भाव सतरों होगीत रीत न सचाही है आनन अलही लाल प्रानन बसाही बाल कवि उरदाम प्रेम रंगन रचाही हैं। लागत लगोही रति रंभा ते अगोही पति परम बकोही नेह नग नखचांही हैं सर्वया पावत उन्नत अंग अनंग तें प्रातुर चातुरता लपटानी रंग भरे तन भूखन अंबर चारु सुगंध सजे सरसानी नूपुर के रमके झमके गति कुंजर को गहरें गरकानी आज अली अनुराग रली उरदाम छली छव सो मुसिक्यानि ५
___End.-सुरवानी मानी जगत भाषा भेद अनेक समुझे अनसमुझे सुखद तिनकों यहै विवेक ॥ ५२ ॥ भामते को भार ते भरी सौदे के छोड़ जात मायके में
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