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________________ 395 वषी दे माही || जानी सरूप प्रदीत बलवाना || तेज प्रताप तव चग्नी समाना तुम्ह प्रादीत परमेस्वर स्वामी ॥ अन्तप्पती के जन अंतर जामो बरनी न जाई जोती कर लोला ॥ षन मधु रंषन परम सुसीला ॥ APPENDIX II. End. - ईती श्री त्रुज महातमें महापुरने ॥ सीय उमा संवादे फली रम फल प्रस्तुतीय रनो नाम दुवादसमा प्रध्यापे इती श्री पाथी ल ुज पुरान सपुरनं समापतं ॥ सुभ मस्तु ॥ सोर्षी रस्तु || मंगलं श्री राम हस्ताछर मेघावी शेन श्री मथुरा जी मध्ये बलदेव जो के मंदीर के पीछे बैठक दुकान संवत् १९२९ मीती भादा खुदी नामी ॥ गुरवार ॥ श्री राम Subject.—भगवान सूर्य की कथा तथा महिमा No. 198. Chhanda Pachisi by Udaya Nātha. Substance -Country-made paper. Leaves-193. Size-7" x 6". Lines per page-20. Extent – 4,800 Slokas. Appearance-Old. Character—Nagari. Date of CompositionSamvat 1853 or A. D. 1796. Date of Manuscript-Samvat 1863 or A. D. 1786. Place of Deposit - The Public Library, Bharatapur State. * Boginning.—श्रोमहागणपतये नमः ॥ कवित्त ॥ सील भरी साईं न पति को न जोड़ें कुलकानि अर साहें तन जाति सरसाती हैं उदेनाथ भोहँ करतो न तीरछा रति भान लो चलोहे द्वार लीं न चलि जाती हैं वेन कहिले को पति मान हो में राप्रान ऐसी कुलबधू काहू का सा बतराती हैं रिस र मन में मन ही में मेट जैसे जल को लहरि जन मांझहि विलाती हैं १ अनसुन बेन लाने लाज भरे नेन मृदु विहसनि अधर पियूष पूर पापे हैं मोहें सुधी भो कुनकांनि दरसेाहें जिन साहे लोक लोकन में भावक अनेोषे हैं पिय के सनेह गेह देहरी न लाएँ आन दीप के समान ऊंचे महल झरोपे हैं सपनेहूं निज पति और की बहू लखि जिनके परत चौथि चंद कंसे धापे हैं २ End. – जो कसरी कौ टोकी माल माहि जो कुच है मकरो रुचिरेरी - जो जगदीस मे प्रांषनि अंजित संजित विंदु जा ठोढिय हेरी जो मम त्रोननि स्याम सरोरुह जा उनमंग सिरोरुह परी सा वह पीतम भाग की रासि प्रकासित पास मा ल्या सषि मेरी ॥ १०७६ ॥ नारिन के चित परबत कों दुबावत जा देकै निज रूप सुधा सिंधु की हिलोर को नरम बचन रचि कानन को प्रानंद अंगनि सिराई जीत चन्द्रमा अथार को सौरभ अमृत कीरु कोर जग घेसी पुनि पीयूष समेत धारै घर की कोर क परो मेरो प्राली बनमाली बरबस में चै मेरी इन पांचा इंद्रियनि अप और कों ॥ १०७७ || दोहा सावन सुदि को तीज को करी
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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