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APPENDIX II.
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धाप ॥ शिव विरंचि सुक नारदादि मुनि प्रस्तुति करत विमल बानी ॥ चौदह भुवन चराचर निरषत पाये राम राजधानी ॥ मिले भरत जननी गुरु परिजन चाहत परम आनन्द भरे ॥ दुसह वियोगनित दारुन दुष रामचरन देषत बिसरे ॥ वेद पुरान विचारि लगन सुभ महाराज अभिषेक किया ॥ तुलसीदास जिय जानि सुवसरु भक्ति दान तब मागि लियो ॥ ३६॥ इति श्री रामगोता वल्या उत्तर कांड समाप्त संवत् १८२३ ॥ Subject:-श्रीरामचन्द्र जी का चरित्र
पृ० १-४८ बाल कांड ,, १-२८ अयोध्या कांड ,, १--७ पारण्य कांड ,, १-२ किष्किन्धा कांड , १-१९ सुन्दर कांड ,, १-१० लंका कांड
,, १-२० उत्तर कांड No. 196(+). Vinaya Patrikā by Tulasi Dāsa Goswami. Substance-Country-made paper. Leaves-188. Size-16" x 6." Lines per page-9. Extent-294 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of ManuscriptSamvat 1883 or A. D. 1827. Place of Deposit-Pandita Lakshmi Nārāyaṇa Dubē, Post Office Karachhanā, District Allahabad.
Beginning.-श्रीगणेशाय नमः ॥ गाइए गणपति जगबन्दन शंकर सुमन भवानीनन्दन ॥ सिद्धिसदन गजवदन विनायक ॥ कृपासिंधु सुदर सब लाएक ॥ मोदप्रिय मुद मंगलदाता ॥ विद्या वारिध बुद्धि विधाता ॥ मागत तुरिदास करजारे ॥ बमहु रामसिय मानस मोरे ॥१॥ दीनदयाल दिवाकर देवा ॥ करै मनुज सु सुगसुर सेवा ॥ हिमि तम करि के हरि कर माली ॥ दहन दोष दुख दुस्तह जाली ॥ काक काक नह लोक प्रकासो ॥ तेज प्रताप रूप रस रासी ॥ सारथि पंगु दिव्य रथगामो ॥ हरि शंकर विधि मूरति स्वामो ॥ वेद पुरान विदित जस जागे ॥ तुलसी राम भाक्त वर मांगे ॥२॥ का जांचिप शंभु तजि. पान ॥ दोनदयाल भक्त भारतहर सब प्रकार समरथ भगवान ॥ कान कूट ज्वर जरत सुरामर निज प्रण लागि किया विषपान ॥ दारुण दनुज जगत दुप दाएक ॥ ज रचा त्रिपुर एक ही बान ॥ जो र्गात अगम महामुनि दुर्लभ कहत