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APPENDIX II.
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तुम्ह रघुपतिहि प्रान ते प्यारे विधु विष चुमै श्रवै हिम आगी, हाइ वारि चर वारि विरागो भए ग्यान बरु मिटै न मोहू तुम्ह रामहि प्रतिकूल न होहू मत तुम्हार यह जो जग कहही, सेा सपनेहु सुष सुगति न लहही अस कह मातु भरत उर लाए थन पैय श्रवहि नैन जल छाए करत विलाप विपुल एहि भांती, बैठेह बोति गई सब रातो, बामदेव वसिष्ट तव ग्राष, सचिव महाजन सकल बोलाए मुनि बहु भांति भरत उपदेसे कहि परमारथ वचन मुदंसे ।
__ अयोध्या काण्ड का अंत-इति श्री राम चरिले मानस सकल कनिकलुष विध्वंसने विमल वैराग्य संपादीनी अजाध्या समाप्त लिषा अलापो मिश्र गाउदेश्वरी मिती वैसाष शुक्ल १० संवत १९२० ॥
अरण्य कांड का अंत-इति श्री रामचरितमानस सकल कलिकलुष विध्वंसने विमल वैराज्ञ संपादिनी नाम तृतीय सेापान सम्पूर्ण संवत १९१० मिती पुस मुदि ३ पास्तक लिषा नाम सहाइ तिबारी ॥
सुंदर कांड का अंत-सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुनगान सादर पुनहिं ते तरहिं भव सिन्धु बिना जस जान ॥ इति श्री रामचरित्रमानसे सकल कलिकलुष विध्वंसने विमल वैराज्ञ संपादिनी नाम पंचम सापान संपूर्न मुभमस्तु संवत १.०९॥
लंका कांड का अन्त-समर विजय रघुवोर के चरित जे मुनहिं सुजाना ॥ विजय विवेक विभूति नित तिन्हहि देहि भगवान ॥ यह कलिकाल मलाय तन मन करि देपु विचार ॥ श्री रघुनाथ नाम तजि नाहिन पान अधार ॥ इति श्री रामचरित मानसे सकल कलिकलुष विध्वंसने विमल विज्ञान संपादिनी नाम षष्टसापान लंका कांड समाप्त संमत १९०९ मिती फालगुन सुदि दुतिय ॥
उत्तर कांड का अंत-कामिहि नारि पियारि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम ॥ तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ॥ इति श्री रामचरितमानसे सकल कलिकलुष विध्वंसने सप्तमो सापान सम्पूर्ण समाप्त १९१४ मिती जेठ बदी ७ पास्तक लिषा राम सहाइ ॥
Subject.-हिन्दुओं को सुप्रसिद्ध और पवित्र पुस्तक जिसमें भगवान गम चन्द्र जी और भगवती सीता जी का वर्णन है।
No. 196(e). Rama. Gita by Tulsi Disa. SubstanceCountry-made paper. Leaves-268. Size-g" x 3". Lines
___page-8. Extent-412. Appearance-Very old.