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APPENDIX II.
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पृ०४-५ कृत्य अरण्य काण्ड के। ,, ४-५ :, किष्किन्धा काण्ड के। ५-६ , सुन्दर काण्ड के।
७ , लंका काण्ड के । ,, ७-९, रामनाम की महिमा ( उत्तर काण्ड )।
No. 196(0). Swayambara by Tulasi Dasa. SubstanceCountry-made paper. Leaves-9. Size-11!" x 8". Lines per page-12. Extent--275 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-The Hindi Sahitya Samiti, Bharatapur State.
Beginning.-श्रो जानकीवल्लभाय नमः ॥ गुरु गनपति गिरिजापति गौरि गिरापति || सारद शेश मुकवि श्रुति संत सरलमति ॥ हाथ जोरि करि विनय सवहि सिर नावऊं ॥ सिय रघुवोर विवाह यथामति गावऊं ॥ सुभ दिन रचेउ सुमंगल मंगलदायक ॥ सुनत श्रवन दिय वहि सिय रघुनायक ॥ देस मुहावन पावन वेद वखानिये ॥ भूमि तिलक सम तिरहुति तृभुवन जानियें ॥ तंह बसत नगर जनकपुर परम उजागर ॥ सीय लछि जंह प्रगटि सब सुखसागर ॥ जनक नाम तहि नगर बस नरनायक ॥ सब गुनअवधि न दूसर पटतर लायक ॥ भयो न हाइ इहि है न को जनक मम नर वई ॥ सोय सुता भई जामु सकल मंगलमई ॥ नृप लखि कंवरि सयानि बालि गुर परिजन ॥ करि मत रचेउ स्वयंबर शिवधनु धरि पन ॥
End.-चौपाई ॥ बंधुन समेत चारि सुत मातु निहारही। बारहि बार भारती मुदिन उतारहो ॥ करहि निछावरि छिन छोन मंगल मुद भरो ॥ दूलह दुलहिनि दषि परम पायन परी ॥ देत पांवडे अग्घ चली लै सादर ॥ उमगि चलो उ(र) आनंद भुवन भुई वादर ॥ नारि उघागि उघारि दुलहिनिन्ह देवही ॥ नयन लाहु लहि जन्म मुफन करि लेवहो ॥ भवन कनक मनि धेनु दान विप्रन्ह दिये ॥ श्री राम सुमंगल हेत सकल. मंगल किये ॥ जाचक किये निहाल अपीसहि जहं तहां ॥ पूजे देव पितर सबु राम उदय कहं ॥ नेगचार करि दोन्ह सबहि पहिरावनि ॥ समयो सकल सुवासिनि गुरु तिय पाहुनि ॥ जोरि चारि निहारि असोसत निकपहो ॥ मनहु कुमुदिनी कुमुद देखि विधु बिगसहो ॥ छंद ॥ विकसहि कुमुद जिमि देखि विद्यु भई अवधि सुष साभा मई ॥ एहि विधि विवाहे राम गावहि सुकवि कल कोगति नई॥ उपवीत व्याह जे सियराम मंगल गाइदे ॥ तुलसी सकल कल्याण ते नर नारि