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APPENDIX II.
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देवराज नै प्रार्थना करी जु मोकू सकुन प्रतिपादक ग्रंथ करि देहु ॥३॥ सा बसंतराज ने राजा के निमित्ति औरहू के उपकार निमित्ति शकुन ग्रंथ कोयों ॥४॥
End.-अरु बन का जीव ग्राम के निकट बोलैं तो भय दिषावें ॥ और जो प्रांम को वेष्टन करि बोले तो शत्रु को सेना प्राम को पाइ रोक ॥ मारु ग्राम विषै अथवा पुर विषै बन के जीव रात्रि प्रवेस कर और दिन को दोषै तो ग्राम पुर की उजड़ करै स्वामो मृत्यु दिषावै ॥ इति वसंतगज साकुन्य चतुर्दस वर्ग चतुष्पद विचार समाप्तं ॥
Subject.-हिन्दी गद्य में बसन्तराज शकुन शास्त्र का अनुवाद । No. 196(a). Rāma Mantra Muktavali by Tulasi Dāsa. Substance -Country-made paper. Leavog-14. Siz0-81" x 43". Lines per page-10. Extent-280 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of DepositSaraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.-अथ लिष्यत मुक्तावली तुलसीदास कृत सर्वसास्त्रमतः सारठा बूझि लेहु सब कोई राम नाम मम मंत्र नहिं कयि(वि) जन लेहु बिलाइ निर्गुन सगुन बिचारि कै दाहा रूप कहां निर्गुन कर सुनौ संत मन मांह निगम
कहै तेहि छाह जो है सबही को नाह १ चौपाई आषर मधुर मनोहर दाऊ वरन बिलोचन पनिपिय जाऊ प्रथमहि निर्गन रूप अनूपा केवल रूप न दुसर रूपा नहि तव पांच तत्व गुन तीनी नहि तव सृष्टि जहां नाग कोनी नहि तव इंदु न तरनि प्रकासा नहि तव पावक नीर नेवासा नहि तव गननायक न सुरेसू नहि तव गुरू सिष कर उपदेसू देवि तरनि नहि रवि सुत केऊ इंदु सुता नहि सुता रवि भेउ नहि तव अरसठि तीस भे पूजा नहि तव देव दैत्य नहि दूजा नहि तव पाप पुन्य अवतारा नहि. तव लिषा पढ़ा संसारा नहि तव निगम जो सृष्टि देषावा नहि तव स्वास न बसन बनावा ॥ दोहा ॥ तुलसी कहै विशेष ते कितम तव कछु नाहि निर्गन रूप तव सगुन हैरहै निरंतर माहि २ बहुत दिवस ऐसहि गये गये काल बहु बीति किये सरूप इक्षा तबहि लिये मनही को जीति ३
End.-दोहा-सब पुरान कर जीव यहि नौ कलि मह इतिहाम निर्गुन सगुन बिचार कै प्रगटै तुलसीदास भक्ति राह कह पवनसुत हि दीन्हेउ तब माहि हरिजन जग जो माहि सम पियूष वस्तु सुइ लेहु पढे सुनै मन लाय कै जो जिय धरि विश्वास सा नर भव से निकसिह पहुंचै रघुपति पास हनुमान सा बिनती करी