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APPENDIX II.
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सब राजपूजा को वल्लव हाई या भांति तौ स्वारथ लहै अरु श्री राधाकृष्ण की वर्ननु है या मैं तिनके ध्यान तें परमार्थ लहै या रसिक प्रिया की प्रति तें दाऊ बात सिद्ध होय ॥ १५ ॥ जोरावर प्रकास को पढ़ गुनै चित लाइ || बुद्धि प्रकास अरु भक्ति मिज जाकों सब भ्रम जाई ॥ १६ ॥ इति श्री मन्महाराज जोरावर सिंह विरचितां रसिकप्रियायां टीका जोरावर प्रकास मिश्र सूरति कवि कृति व्याख्या समाप्तम् || मिती मार्गशर शुदि १३ संवत १९१८ लिखतं लेखराज मिश्र पठनार्थं चिरंजीव लाल बिहारी लाल लिखायतं कोसी मध्ये शुभमस्तु ॥
Subject. - केशवदासकृत रसिकप्रिया को टीका
पृष्ठ १ वंदना और ग्रंथनिर्माण का कारण ।
२ राजवंश वर्णन |
३ मङ्गलाचरण - रसिकप्रिया का ग्रन्थारम्भ ।
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No. 189(b). Bhakta Vinoda by Sūrati Misra. SubstanceCountry-made paper. Leaves-28. Size-103" x 6." Lines per page-22. Extent—600 Ślokas. Appearance—Old. Character—Nagari. Place of Deposit — Tho Public Library, Bharatapur State.
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Beginning.—अथ भक्तविनाद लिष्यते ॥ सूरत मिश्र कृत ॥ दोहा ॥ ध्यान धरै प्रभुं कों हिये नाम स्वाद अनुरक्त दोन भाव बिनती करें जय जय श्री हरिभक्त ॥ १ ॥ मन सिक्षे प्रभु की जु प्रिय तिन गुन बग्नत मोद समय समय aar कहे. इहि विधि भक्ति विनोद || २ || श्री राधावल्लभ जू को कवित्त ॥ चंद्रिका प्रिया के भाल लाल के मुकट राजे स्याम साभा नील पोत पट धारें ते प्यारी जू के उर मणि मालनि के जाल बाल लाल कै रसाल बनमाल रूप भारे तं दंपति की सूरति की संपति विलार्के फेरि राषिहै न कछू तन धन प्रान वारे तें पूजें मन साधा जामें आनंद अगाधा ए ए जैहैं सब बाधा राधावल्लभ निहारें तें ॥ श्री बांके बिहारी जू कौ कवित्त ॥ टेढ़ी मांग लाल पै लबेढी मनिमाल ता कलगीं रसाल साभा कोटनि लहति है अरगजेवारी कैसे नीके प्रति लागेँ देवे कोंन अनुरागे लाज कैसे निवहति है ॥ प्राजु में बिहारी जू की सूरति निहारी बलिहारी जिहिं लषें कोन धीरता गहति है पाई एक झांकी जाने सेाभा चहूंघां कोरी देखें वाकी कछू वाकी न रहति है ॥ ४ ॥
End. —सूर्ज गृहन कुरुक्षेत्रहि आये ब्रज जन मिलं परम सुष पाप द्रोपदी मिली सबै पटरानी अप अपनी तह कथा बषानी यों कथा देवकी के प्रथम सुत दिये हैं प्रभु पुनि प्रांनि के ब्याही सुभद्रा अर्जुन बल स विनय प्रति ठानि के दिय दरसडिज श्रुति देव नृप पुनि सुनी वेद स्तुति करा बृक मारि द्विज का पुत्र दिये