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APPENDIX II.
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___No. 188. Mithitar Mahatmya by Sāra Kisora. Substance -Country-made paper. Leaves-2. Size--10° x 6". Lines per page-13. Extent--25 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning to end.-श्री सीतारामाभ्या नमः छप्पै ॥ जंह तीरथ तंह जमनवास पुनि जीउका न लहिए ॥ असन बसन जह मिलै तहां सतसग न पैये राह चार बटमार कुटिल निरधन दुख देहों सहवासिन सन बैर दूरि कहु बसै सनेहो कह सूर किशोर मिले नही जथायोग चहिये जहा कलिकाल ग्रसेउ अति प्रबल हि हाय गम रहिये कहा १ मिथिला कलिकाल असो सगरी तब जानकि जू झट दै उघरो अन साधन सा पर भूषन सा सुख संपति मंदिर आनि धरी मत संग समाज कथा चरचा नित आनंद मंगल होत झरी कह मर किशोर कृपा मिय की यक वारहि बात सबै सबरी २ नृप के ग्रह बाल विहार करै सिय को पदरेनु जहां लहियै मुनि वृद उपासक राम विवाह साई निज ठार हिये गहिये कह मूर किशोर बिचार यही हिम वा तप वो बरषो सहिये चिरवा चवि कै फल वा भषि कै मिथिला मंह बांधि कुटो रहिये ३ पुरातन पूरन पृन्य मथान पूरी साई वेद पुरान विसंषी उद्दीपन प्रेम कि सूर किशोर उपासक संतन को भुवि पंषी कहा वहुकाल जिये जग मै धृग जीवन जी मिथिला नहि देषी मिथिलापूर ते षट काम लसे उतराधिप टार जहा बन है शिव के कर का नृप के प्रन को प्रभु के कर का परसा धनु है कलिकाल ग्रस धसिह धरनी निरपा अबही जिनको प्रन है कह सूर किशोर लगै कछु असा मनो सियरामहि को तनु है ४ निबहो तिहु लोक में सूर किशोर विज रनमें निमि के कुल को जस जाई रहा सप्तदीप लुकान कथा कमनीय रसातत्न को मिथित्ना बमि गम सहाय चहै तो उपासक कौन कहै भल की जिन्ह के कुल वीच सपूत नहीं कर पास दमादन के बल की ५ उभय कुल दीपति या मनि जानकि लोकनि वेदकि मेड न मेटी भरी सुष संपति अवधपुरी रजधानी सबै लछना सा लपटी करे मिथिला चित सूर किशोर सनेह की बात न जात समेटो काटिक सुख्य हाय ससुरारि तो बाप को भवन न भूलत बेटी ६ कलिकाल बढ़गै दल जीत चढगे सब वेद पुरान भये शिथिला साधु कि ठौर प्रसाधु बस मुथला जेहि ठौर भये कुथला वर्णाश्रम धर्म विचार गये द्विज तीरथ देव भये निथिला रही और न ठौर कह जग में तव सूर किशोर तको मिथिला ॥ ७॥ माविक सूर किशोर सा द्वितीय विस्व नाहीवियो मिथिलापुर में बास जनक कैसा प्रतिपाल्यो मान जानकी सता राम सा खेलन घाल्यो तीरथ जात्रा गये अवध म बास म कोन्हा