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________________ APPENDIX II. 373 बरख सिरानों ॥ परों चरन तव प्रभु कर जान्यों ॥ यह करतूत करो तुम केसे ॥ हम संग सदा रहत हो जैसे ॥ हमहिं मिले तुम गाय चरावत ॥ नंद जसादा सुवन कहावत ॥ देख रहो सब गोपकुमागे ॥१ कर जोरत रवि गाद पसारे || गिरिवर धरे ये होहिं हमारे ॥ असे गिर गोवरधन भारी॥ कब लीनों कब धरयो उतारो॥ तनक तनक भुज तनक कन्हाई ॥ यह कहि उठी जसादा माई ॥ कसे पर्वत लिग उठाई ॥ भुज चांपति चूंवत बन जाई ॥ बार बार निरखत पछिताई ॥ हसत देखि ठाढ़े बलभाई ॥ गिरिवर धरयों ईन्हें बहुताई ॥ एक एक रोम बहु ब्रह्मांड । वि ससि धरिनि सिंधु नव खंड ॥ यह ब्रज जन्म लाया के वार ।। जहां नहीं जल थल अवतार ॥ प्रगट होत भक्तन के काज ॥ ब्रह्म कोट सम सब क राज ॥ जहां जहां गाढ़ परे तहां पावें ।। गरुड छाडि ता सनमुख धावें ।। वृज ही में नित करत विहारन ॥ जमुमति भाव भक्ति हित कारन ॥ यह लीला इनको अति भावें ॥ देह धरत पुनि पनि प्रगटावें । नेक तजही नहि नर अरु नारो ॥ ईत के सुख गिर धरत मुरारो ॥ गर्ववंत सुरपति चढ़ आऐ ॥ बाम करज गिर टेक दिग्वाये ॥ असे हे भुजगर्व प्रहारी॥ भुज.चुंक्त जसुमति मेहेतारी ॥ यह लीला जो नित प्रत गावें ॥ ताके पास कषुध ने प्रावें ॥ सुने सिखे पढि मन में राखे । प्रेम सहित मुख ते पनि भाखे ॥ भुक्ति मुक्ति की केतक पास ॥ सदा रहत हरि तिन के पास ॥ चतुरानन जाको जस गावें॥ सेस सहस्र मुख जाहि बखाने । पादि अंत काऊ नहिं पावें । जाका निगम नेत नित गावें । सूरदास प्रभू सब के म्वामी ॥ मरण राख मोहि अंतरजामी ॥ ७० ॥ इति श्री सूरदास कृत गोवर्द्धन लीला संपूर्ण ।। श्री कृष्णार्पणमस्तु । श्री कृष्णजी ॥ Subject.-श्रीकृषण की गोवर्द्धन लीला अथवा श्री कृष्ण का 'गोवर्द्धन" का उंगली पर सात दिनों तक रखे हुए व्रज भूमि का इन्द्र के कोप से बचा लेना। ___No. 186(1). Prina Pyari by Sura Dasa. Substance -Country-mado papor. Loaves-5. Sizo - 6' x 6". Linos per page--8. Extent--32 ślākas. AppearancoOld. Character-Nagari. Place of Deposit-Sri Devaki Nandanācharya Pustakālaya, Kāmabana, Bharatapur. Beginning.-श्रीगणेशाय नमः ॥ अथ प्रान प्यारो लिष्यते ॥ राग बिलावल चाल | बरसाने अषभान दुलारी चंद बदन लोचन मृगचारी ॥ चरन कमल पोर बचन रसाल ॥ खेलन चली ताहां श्री नंद जु के लाल ॥ निरखि बदन तन नंद जु कि रांनी ॥ छंद ॥ गोद उठाये भवन में जु पानि ॥ आभुषन पेहराईये ॥ सर के प्रभु साजि निख सिख प्यारी जु घरा रहे पठाईये ॥१॥ अहो मेरी प्रान
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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