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APPENDIX II.
End.-सत्यवती सराप भय मान ।। रिषि को वचन किया पग्मान ॥ व्यासदेव ताके सुत भए । हान जनम बहुरे बन गए । जाजनगंधा माता करी॥ मछवास ताकी सहचरी ॥ देवी काम प्रताप अधिकाई ॥ बस कीयो पारासुर रिषिराई ॥ प्रबल शत्र आह यह मारु ॥ यातें सबै चलौ संभारु ॥ या विधि भयो यास अवतार ।। सूर कह्यो भागवत अनुसार ।। इति श्री सूरदास कृत सूर सागरे संपूर्ण सुभं भवतु ॥ रिपुदलमर्दन अखंड बल बुद्धि युक्त सूर का सा तेज रूपवंत मे न मानिये ॥ विश्वपर धीश जय किशोर जू को आयस पाय सूर कृत दश लिषो पहिचानिये ॥ रस मुनि वमु इंदु संवत कह्या विचार चैत्र मास कृष्ण पक्ष साते तिथि पानिये ॥ चंद्र युत अनुराधा युक्त मख्या के समय मांझ टोड़ी ब्राह्मन ने लिपा सा जानिये ॥ लिषतं हाथरस सुभम्थाने ॥ ग्रंथसंख्या ११५६२
Subject.-सूरदास का सूरसागर अर्थात् श्रीमद्भागवत द्वादश स्कंध पर्यन्त । पद संख्या २३४२ ।
No. 186(e). Govardhana Lilā Barli by Sūra Dāga. Substance-Country-made paper. Leaves--45. Sizo -41" x 4". Lines per page-10. Extent - 300 Slokas. AppearanceOld. Character-Nagari. Place of Deposit-Sri Devaki Nan. danāchārya Pustakālaya, Kāmabana, Bharatapur. ___Beginning.-श्रीकृष्णायनमः ॥ अथ सूरदास जी कृत गोवर्द्धन लीला बड़ी लिष्यते ॥ राग बिलावल ।। नंद ही कहतो जसादा रांनी ॥ सुरपति पूजा तुमही भुलानी ॥ यह नहीं भली तुम्हारो बानो ॥ में गृहकाज रहों लपटानी ।। लोभहि लोभ रहों हो सानो ॥ देवकाज की मुरत बिसरानी ॥ पूजा के दिन पाहाचे प्रानो ॥ सूरदास जसामत की बानी ॥ नंद ही षोभि षोझ पछतानी॥१॥ नंद कही सुधि भली दिवाई ॥ में ता राजकाज मन लाई ॥ नित प्रति करत इहे अधिमाई ॥ कुलदेवता मुरपति विसराई ॥ कंस दई यह लोग बड़ाई ।। गाव दसक सिरदार कहाई ।। जलधि बूंद ज्या जलधि ममाई ॥ माया जहां की तहां बिलाई ॥ सूरदास यह कहि नंदराई ॥ चरण तुमारे सदा कहाई॥२॥ कहत में हेरत वये सी वानी ।। ईंद्रहि को दीनी रजधानी ।। कंस करतु तुम्हरी अति कानो ॥ यह प्रभू की हे पासिख बानी ॥ गोधन बहुत बड़ाई मानो ॥ जहां तहां यह चलत कहानी ॥ तुम घर मथिये सहस्त्र मथानी ॥ ग्वालिन रहती सदा बिततानी ॥ तृण उपजत (हैं) उनके पानी ॥ येसे प्रभु को सुरत भुलानी ॥ सूर नंद मन में तब पानी ॥ सत्य कहो तुम देव कहानो ॥३॥
___End.-हरि कर तें गिरराज उतारों ॥सात दिवस जल प्रलय सम्हारों। ग्वाल कहत केसे गिर धाखों ॥ केसे सुरपति गर्व निर्वासों ॥ बज्रायुध जल