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________________ APPENDIX II. : 371 Beginning.-श्रीगणेशायनमः॥ अथ सूरसागर लिष्यते ॥राग बिलावल । चरनकमल बंद हरिराइ ॥ जाकी कृपा पंगु गिरि लंधै अांधे को सब कछु दरसाई ।। बघरा सुनै मूक पुनि बोलै रंक चलै सिर छत्र ढराई ॥ सूरदास स्वामी करुणामय बार वार बंदो तिहि पाई ॥१॥ राग कान्हरा ॥ अविगत गति कछु कहत न आवै ।। ज्यों गूगे मोठे फल का रस अंतरगत ही भावै ॥ परम स्वाद सबही जु निरंतर अमित ताष उपजावै ।। मन वानी को अगम अगोचर सा जानै जो पावै ॥ रूप रेख गुन जाति जुगत विन निरालंब मन चकित धावें। सब विधि अगम विचार हैं ताते सूर सगुन लीला पद गावै॥ ___End.-और निहं सा नृप जब भाषा x नृपति x x ह नहि राज्यौ । लघु सुत नृपति बुड़ापा लयो । अपनों तरुना पातिहि दया x x व सहस भोग तिन किये ॥ पै संतोष न उपज्यौ हिये ॥ कहयो विषयनि तेतृ x x होइ ।। भोग करौ केतो किन काय ॥ तव तरुनो सुत को दोनों ॥ वृद्धपनों x x नों फिरि लोनों ॥ बन में करी तपस्या जाइ ।। रह्यो हरि चरनन चित लाइ ।। या x x x सा राजा में तुम सा कह्यो । सुक ज्यों नृप सेां कहि x x मझाइ सूरदास त्योंही हि गाई ॥ ४६२॥ इति श्री भागवते महापुगणे सूरदास कृते नवम स्कंधः ॥ ९॥ लिषितं ब्राह्मण गमवकम हाथरस मध्ये x x केशवदेव के मंदरम ॥ पठनाथं ठाकुर माहब जयकिशोर शुभमस्तु ॥ संबत १८७६ ॥ Subject.-भागवत की कथा, स्कन्ध १-९, पद संख्या ४६२ । No. 186(d). Sūra Sāgara (X to XII) by Sura Dāsa. Substance-Country-made paper. Leaves-362. Size-16" x 10". Lines per page-20. Extont--11,250 Slokas. Appearance-old. Character-Nāgarī. Date of Manuscript -- Samvat 1876 or A. D. 1819. Place of Deposit-Sri Matangadhwaja Prasada Simha, Viswan (Aligarha). Beginning.-श्रीगणेशाय नमः॥ श्री सरस्वत्यैनमः ॥ अथ दशम स्कंध लिष्यते ॥ राग बिलावल ॥ व्यास कह्यो सुकदेव से श्री भागात बषानि ॥ दशम स्कंध परम सुभग प्रेम भक्ति की खानि ॥ नवम स्कंध नृप से कहै श्री सुकदेव सुजान ॥ सूर कहत अब दशम का उर धरि के हरिधान ॥ ४६३॥ राग सारंग ॥ हरि हरि हरि हरि सुमिर करो ॥ हरि चरनारविंद उर घरो ॥ जय अरु विजय पारषद दाई ॥ विप्र सराप असुर भद साई ॥ होइ जनम ज्या हरि उद्धारे ॥ सा तो में तुम से उचारे ॥ दंतबक शिशुपाल सुभए ॥ वासुदेव है सा पुनि हो । पौरी लोला बहु विस्तार ।। कोनो जीवन का निस्तार ॥ सा तुम से सकल बषानों ॥ प्रेम सहित सुनि हदै पानों ॥ जो यह कथा सुनै चित लाई ॥ सा भव तरि वैकंठ सिधाई ॥जैसा नृप सा सुक समुझाई । सूरदास त्यांहो कहि गाई ॥२॥
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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