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________________ 370 APPENDIX II. करत है स्वारथ विना करत मित्राई ॥ रावण अरि को अनुज विभीषन ताको मिले भरथ की नाई ॥ वाकी कपट करि मारन आई सो हरि जू वैकुंठ पठाई । बिन दीने ही देत सर प्रभु जैसे है जदुनाथ गुसांई॥ ___End.-जनमेजय यज्ञ कथा वर्ननं ॥ राग बिलावल ॥ हरि हरि हरि हरि सुमिरन करी ॥ हरि चरनारविंद उर धरी ॥ जनमेजय जब पायो राज ॥ एक बार निज सभा विराजि ॥ पिता वैर मन मांहि विचारि ॥ बिप्रनि सां यों कह्यो बिचारि ॥ मा को तुम अब जज्ञ करावऊ॥ तकक कुटंब समेत जरावऊ ॥ बिप्रनि सप्त कली जब जारी तब राजा तिनसां उच्चाग ।। तछक कुल समेत तुम जारी॥ गया इंद्र निज मरन उबारी ।। नृप कह्यौ इंद्र सहित तुम्हि जारौ ॥ बिप्रनि ह यह मतो बिचारी ॥ आस्तीक तिहिं आसर पायो । राजा सां यह बचन सुनाया। कारन करनहार भगवान ॥ तछक डसनहार मति जानि ॥ बिन हरि प्राज्ञा जुलै न पात कौन सकै काहु संतापि ॥ हरि ज्यों चाहे त्यों ही होइ ।। नृप यामें संदेह न कोइ ॥ नृप के मन यह निहचै आयौ ॥ जज्ञ छाडि हरि पद चित लाया ॥ सूत सौनकनि कहि समुझायौ ॥ सूरदास त्यो हरि गुन गाया ।।१७४५ ॥ इति श्री भागवत महापुराणे सूरदास कृता द्वादश स्कंधः समाप्तः ॥१२॥ इति संपूर्णम् । संवत् १७९८ श्रावण मासे कृष्ण पक्षे पंचम्यां चंद्रः॥ शुभं भूयात् ॥ कल्याणमस्तु । श्री श्री श्री श्री श्री॥ Subject.-मागवत की कथा पृ. ५-२७, व्यास अवतार पृ. १४-१०४, भागवत अवतार । पद सख्या । पद संख्या कंध १म २०८ स्कंध ७म SC000 १५ २ ३५ १२श No. 186(o). Sūra Sāgara (I to IX) by Sūra Dāsa. Substance.-Country-made paper. Leaves—194. Size-114" x 7". Lines per page-10. Extent--5,000 Ślākas. Appearance-Old. Character--Nāgarī. Date of Manu. soript- Samvat 1876 or 1819 A. D. Place of Deposit-Sri Matangadhwaja Prasāda Sinha, Viswān (Aligarha).
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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