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बैसर फुल धरै पकरै कर सुंदर जु पनई ॥ जब नागरि जांनि के बाग मैं हे मुरझाई रहो अनुरागमई । पछिताति सुतौ मनही मन मांहि कहै सुधि काहु न मोहि दई । वहिं गेहर षेल कौं लाल गये जु कहा कहिये अत्नी हुं न गई || ८३ ॥ अथ मुदिता लखना || दाहा ॥ सुनत भावती बात की ।। फुलै जाका गात ॥ तासां मुदिता कहत है ॥ तं कविता सरसात ॥ ८४ ॥ सवैया || लोग बरात गये सगरे तुम राति जगे कौं चत्नी सब काऊ ॥ सुंदर मंदिर सुनौं यहां अब की रषवारि हो ताहि कौं जाउ || फुलि गया मुनिं वात यौं गात समात न कंचुकी मैं कुच दाउ ॥ ८५ ॥ अथ सामान्या वरनन || दोहा ॥ तासा सांमान्या तिया । कहै महा कविराय || जाकै मिलते रस सबै ॥ धन सौं हात उपाय || ८६ ॥ लटकि मटकि मुसकाय मुरि ॥ करै कटाछि सिगार || बहु दामनि की दानि जब ॥ प्रायो दषै द्वारि ॥ ८७ ॥
APPENDIX II.
End.—रुपे की भूमि कै पारो परसी सगरो जग चंदन सौ लपटांनी ॥ य लषि जोन्ह महाकविराय कई उपमाई कया हुतै ग्रांनी ॥ चंद की या मुनि क affaraiनां सित अंबर जानों ॥। उजल कै पनि जाति बनाई दसौं दिन ये मंदिराबी हैं मनीं ॥ ७३ ॥ दोहा ॥ सुर बांनी यांते करी ॥ नर बानी में लाय ॥ जैसें मंगु रसरीति को सब पैं समुभया जाय ॥ ७४ ॥ यह सुंदर सिंगार को ॥ पौथो रची बिचारि ॥ चुक्यौ हाय कहुं कछु || लोज्यौ सुकवि सुधारि ॥ ७५ ॥ ईति श्री मनमहाकविराज विरचिते सुंदर सिंगार ग्रंथ संपुरण समापता ॥ १ ॥ श्लोक || मंगलं लेषकानां च ॥ पाठकानां च मंगलं ॥ मगलं सरव लोकानां ॥ भूमिन्तु पति मंगलं ॥ १ ॥ दोहा ॥ यह सुंदर सिंगार कूं लाय || आवै बुद्धि ववेक || कुमति सबै टलि जाय ॥
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जो ( न ) र पढ़ चित
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Subject. - नायिका भेद ।
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श्री ॥ श्री ॥
Extent-725
No. 185. Sundara Gitā Vairāgya Prakaraṇa by Sundara Dāsa. Substance- Country-made paper. Leaves-52. Size - 57 " x 42". Lines per page-14. ślokas. Appearance-Old. Character—Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1904 or 1847 A. D. Place of DepositSaraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning. - श्री गणेशाय नमह || श्री स्त्रोस्तियास नमह || श्री पाथी सुंदर गीता वैराग्य परिकरण से लोष्यते कवोत्य सवैया ॥ मंदोर मांह वोलाइत है गज उंट दमामदि नापक दोहे तातहि मातु त्रिया सुत बंधव देषि जो पामर होत बिछा है झूठ प्रपंच से राच रचे सठ काठ की पूतरि जौ कपि मेोहै मेरि हो मेरी हि कैनोति सुंदर प्रांषि लगै कहु कौन क कोई १ पेट ते बाहर हातहि बालक