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APPENDIX II.
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___End.-अथ ब्रह्म लक्षण कवित्त ॥ शेष के सहस्र फण जिह्वा छै सहस्र जाके नये नये नाम नित लेत रहियतु है ॥ एक एक ब्रह्मग्रंड पावत न पार कोहु असे कोटि २ रोम रोम लहियतु है ॥४॥ कहै शुकदेव एक अद्वैत पुरुष जासौ नेति नेति प्राणायाम बहियतु है ॥ सद चिद आनंद स्वरूप अविनाशी अज पुरण प्रगट पारब्रह्म कहियतु है ॥ दाहा। ये द्वादस विस्तार सौ कहे विशेषन चार ॥ असे जानै ब्रह्म की यहै वेद का सार ॥ ६॥ वेद स्मृति के बचन को करी शुकदेव विलाम ॥ अध्यातम परकास तै अध्यातम परकास ॥ ७॥ अष्टादस से उनसठा पाश्विनी मास बखानि ॥ देवी दिन चंद्रवार को शुकल पक्ष शुभ जानि ॥ इति श्री अध्यात्म प्रकाश शुकदेव कृत समाप्तम् शुभम् ।। श्री रामः ।। श्री कृष्णः ।। श्रो वासुदेवः॥
Subject. पृष्ठ १ बंदना ब्रह्म की, ग्रंथकार को भूमिका।
२ गुरुशिष्य संवाद-साधन चार हैं (१) वैराग्य, विवेक, शम
दम, मुमुक्षु । वैराग्य लक्षण, विवेक लक्षण, समाधि लक्षण,
मुमुक्षु लक्षण।
देश
.. ४ तत्वर्मास, तत् २५ त्वं जीव, असिब्रह्म । माया, जाव,
माया, ब्रह्म के भेद । ., ५-७ तत् पद की व्याख्या। , ७-२० व्याख्या--" त्वं" पदार्थ की। ,, २०-२२ व्याख्या-" असि" पद की ।
,, २२-२६ ब्रह्म के द्वादश विस्तार अथवा विशेषण । No. 183 (6). Vřitta Vichāra by Sukhadeva Misra Kavirāja of Kampila. . Leaves--124. Size-8" x 5". Lines per page- 18. Extent-About 1,000 Slokas. Character-Nagari. Place of Deposit-Pandita Durga Datta Avasthi, Kampila, District Farrukhābād.
Beginning.-श्रीगणेशायनमः छन्द गोपाल जय जय मोहन मदन मुरारि कमलनयन केशव कंसारि करुनाकर केशीरिपु कृष्ण जय वसुधाघर वामन विष्ण