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APPENDIX II.
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माषन काहि चषैहौं । बिन द्वउ भ्रात प्रात कहु कैसे प्रांगन काहि ख्यलै ॥ गिरि फिरि घूमि घूमि मुख चूमत कहत तात बलि जैहौं । तुम जनि जाहु दाहु र मेरे अब मै काहि ख्यलैहीं ॥ कहत टेर मुख हेरि फेरि कै कोऊ स्याम व्यनलमै । सुत को छोह मोह कहु सखि री कित हो जाइ भुलैहीं ॥ कहत स्याम समुझाय मातु का कछुक दिनन मैं ऐहीं ॥ रथ चढ़ि बार बार भाषत आइ सु दरसन पै ॥
End. - छिति अनिल अम्बु अगार अम्बर अग्निमय अवलेषिये । दिशि विदिशि पूरि सुधूरि धुधुरि ज्वालामाल बिलाकिये । जग जीव जाल शाल व्याकुल सुरमरस बरमाइये ॥ उर दहत दाघ निदाघ श्री घनस्याम कंठ लगाइये ॥ करुणानिधान सुजानि मोहित मान विनती लीजिये || राधे सुदरसन को सदा दै दरस दास सु कीजिये ।। इति वदति श्री ( रा ) धा विरह में बरहमासा गांवही ॥ नरनारि कोइ सु होइ पावन सर्वदा सुख पावहीं ॥ मधु मास सुक्ल सु सप्तमी बुधवार श्री रितुराज है ॥ जुग नन्द रन्ध्र सुचन्द्र संयुत कोलकाद सुनाम है । अपूर्ण ।।
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Subject.—भक्ति और ज्ञान पूर्ण बारहमासा ।
No. 183 (a). Adhyātma Prakāsa by Sukadeva Misra. Substance--Country-made paper. Leaves – 26. Size - 6” x 3". Lines per page-7. Extent-370 Ślōkas. AppearanceOld. Character—Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1859 or A. D. 1802. Place of Deposit-Lakshmaņa Kilā, Ayōdhyā.
Beginning. - श्रीगणेशायनमः ॥ अथ अध्यात्म प्रकाश लिष्यते ॥ कवित्त ॥ थावर जंगम जोव जिते जग भातिन भातिन वेष धरैहैं ।। ता मह सच्चिदानंद स्वरूप सुप्रातम एक प्रकाश करै है ॥ ता बिन तै सिंधु सौ लागत जानै तै गोपद तुल्य तरे है | बंदत ताहि कहै शुकदेव सु ब्रह्म सदा सर्बाहि ते परे है ॥ १ ॥ व्यास मथन करि वेद सब सूत्र निकारै सारु ॥ श्री गुरु शंकर देव जू कीन्हा बहु विस्तारु ॥ तिन ग्रंथन कौ समुझि मत हिय घरि पर उपकार । भाषा करि शुकदेव जूरच्या ग्रंथ प्रति चार || ३ || जैसे रवि के तेज तै अंधकार मिटि जाई ॥ अध्यातम परकास तै त्यों अज्ञान नसाई ॥ ४ ॥ गुरु शिष्य की वाद अरु वेद बचन उपदेश | अध्यातम परकास यह भाषा सरल सुवेस । अधिकारी जिज्ञासु अरु शिष्य काय साई । तप साबुन करि देह के पापनि डारै धोई ॥ ६ ॥