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________________ APPENDIX II. 359 No. 179 (g). Sujāna Vilasa by Sasi Natha alias Soma Nātha. Substance -- Country-made paper. Leaves-100. Size - 112 " x 72". Lines per page — 17. Extent-2, 265 Ślōkas. Appearance-Old. Character — Nagari. Date of Composition—Samvat 1807 or A. D. 1750 Place of Deposit— Pandita Navanita Kavi, Mārū Gali, Mathurā. Buginning. - श्री गणेशायनमः ॥ अथ सुजान विलास ससिनाथ कृति निष्यते ॥ दोहा ॥। गुरु गणपति गोपाल के पग अरवृदन ध्याइ || वर्न सुजान विलास को परम सुष्य सरसाइ ॥ १ ॥ प्रेम सहित सिनाइ के बानी सुमिरो ताहि भुवन की बानी मधुर बानी दीजे मोहि || २ || सवैया ॥ ग्रामनि में द्रुम पुंज निकुंज प्रफुल्लित सौरभ को भरनी हे ॥ चारु प्रभाकर की तनया ग्रह चारि पदारथ की करनी है ।। नित्य जपे समिनाथ होयें जहा की रज पापन की दग्नी हे || लोकन यो बग्नी करनी दुष की हरनी बृज की धरनी हे || ३ || दोहा ॥ तिहिं बृज मंडल मध्य हे दीरघ नगर प्रकास ।। अव ताको वर्ननु करों मंडित होये हुलास || ४ || मधुभार छंद ॥ दोरघ सुग्राम ॥ प्रति ही ललाम | लह गढ़ बिलंद ॥ के मंद || ५ || बुर्जन अनेक || मंडित विवेक ॥ सहसनि बिसास ॥ जुत जंत्र जाल ॥ ६ ॥ तिनि ये पताक । सरसंति धाक ॥ कलधौत रंग ।। जितवार जंग ॥ ७ ॥ गढ़ में प्रकास ॥ नृप के प्रवास ॥ राजनि सुधारि ॥ रच्चे बिचारि ॥ ८ ॥ गन्ना उतंग ॥ कनसनि मुढंग ॥ छबि को छटानि ॥ परसे घटानि ॥ ९ ॥ End. - मिश्र निरात (म) दास जू भयेा छिरोरा वंस || रामसिंघ के मंत्र गुर माथुर्कल अवतंस || ७७ ॥ तिनके पुत्र प्रसिधि दकी (देवकी ) नंदन भए । विद्या बुधि समुद्र जग उत्तिम जस लए ॥ तिनको अनुज अनूप एक श्रीकंठ सुहाए ॥ ताके जागे भाग जिननि वे दरसन पाए ॥ ७८ ॥ दाहा ॥ उपजे नंदन मिश्र के चारि पुत्र सुषदानि ॥ नीलकंठ मोहन बहुरि मिश्र महामति जानि ॥ ७९ ॥ चौथे राजा राम पुनि निजु मनि में पहचानि ॥ सबे भाति लाइक सबै निपट रसिक उर आनि ॥ ८० ॥ कवित्त ॥ काम अवतार से अनूप अति रूप ( करि सील ) करि सुंदर सरद सुधा. घर से | कविता में व्यास के समान (क) हि सोमनाथ जुद्ध रीति जानिबे को परथ से दरसे ॥ विधिकर सिंधुर बदन के समान और उद्धित उदारता मे भूमि सुरतरु से । सिद्धिता मे विमल वसिष्ट मुनिवर से अरु जोतिष में नीलकंठ मिश्र दिनकर से ।। ८१ ॥ दोहा ॥। तिन (के) पुत्र प्रनंद निधि बडे उजागर जानि जिनको सुजस दिगंत लो महा उजागर मानि ॥ ८२ ॥ गंगाधर तिनको अनुज गंगाधर परिमान ॥ सोमनाथ जिनको अनुज सबसे निपट अजान ॥ ८३ ॥ ताने सूरजमल्ल को हुकुम पाइ परकास ।। रची कथा बत्तीस में ग्रंथ सुजान विलास ॥ ८४ ॥ सहस गुनी
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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