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APPENDIX II.
____ Beginning.-श्रीरामायनमः ॥ अथ अरन्य कांड लिख्यते ॥ दोहा । दिनकरकुलमंडन प्रबल दशरथ नंद गंभीर ॥ बिघनहरन मंगलकरन जय जय जय रघुवीर ॥१॥दंबक बन में पैठि पुनि राघव साह सवांन तपसी प्रास्रम मंडलहि निर ध्यो तेज निधान ।। २॥ पाश्रम मडल बर्नन ।। प्रमिसाक्षर छंद ॥ सरसे कुस चीर कहूं बगरे । द्विज श्री संग मंडित हे अगरे । नभ में जिमि सूरज बिंब लसै ।। जिहिं मद्धि अजीत प्रभा दरसै ।। ३।। तपसी गन पाश्रम यों वन मैं ॥ दुतिवंत लसात भरे पन मैं ॥ सुबनें अति उज्जल अंगन हैं। मृगपतिन मंडि सुढंगनि हैं॥४॥ सव जीवनि की मुषदायक है। अति ही अरि के नित घाइक हैं । अरु प्रक्षर यों नित पावति है। तपसीनि अरचि मृगावति हैं ॥५॥
__End.-मुक्कादाम छंद ॥ रघुवर लक्षमन वीर उदाम ॥ दुवैौ दन रक्षत हैं अभिराम ॥ चढ़ दिसि बंदर वृद प्रचंड ॥ भनी विधि रक्षित है वनबंड ॥२७॥ तहां चढ़ि के चलिवा न उचित्त ॥ पूरी कहुं रक्षटु जू जित तित्त ।। पहल्लहु तो करनौं यह काज ॥ पयोनिधि पार समेत समाज ।। २८ । जु बंधत हे जव मेतु उदार ॥ हुता करतय तबै मु बिगार ॥ पहंच्चिय आय रघुवर फौज ॥ इतै हमहूं बलवंत समाज ।। २९ ।। कवञ्च सस्त्रनि सजि अषंड ॥ तिन्है हनिहै करि जुद्ध घमंड ।। इते मयि ठुक्कि दुवो भुजदंड ॥ वली अतिकाय पराक्रम चंड ।। ३०॥ दशमुष सों उचो यह बैन ।। मुनै महाराज अजू मुषदैन । प्रजापति पालहिं जे नर पाल ॥ भने द्विज रक्षह बुद्धि बिसाल ॥ ३१ ॥ x x x
तुम बिलसी राज सुबेस ॥५८ ॥ श्री बदनसिंघ ब्रजमंडल नायक जग जाको जस छायो । ताको कुंवर प्रतापसिंघ वर आनंदनि अधिकायो । तिहिं निमित्त कवि सोमनाथ ने रामचरित्र बनायो । सतां सर्ग मुंदर को अब यह प्रगट भयो छवि छायौ ॥ ५० ॥ इति श्री मन्म्हाराज कुमार जदुकुलावतंस श्री प्रतापसिंह हेतवे कवि सामनाथ विरचिते गमचरित्ररत्नाकर मुंदर कांडे राजवंस वर्ननं नाम सततमः सर्गः ।। इति श्री सुंदर कांड संपूर्ण ॥ संवत १८४० ॥ वैशाख शुक्ल सप्तमी भृगुवासरे । लिखतं वैरि मध्ये ॥ शुभं भवः ॥ Subject.-रामचरित अरण्य कांड व सुन्दर कांड । समें
प्रति लिपि का संवत अरण्य ७५ १४२ किष्किंधा ६४ सुन्दर काख १००
१८४०
पत्र
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