________________
APPENDIX II.
356
बड़ी चौपई ॥ हिय दसरथ नृप के सब सुत प्यारे एकै गति सुहाई ॥ तन जैस ध्यारों भुजा आपनी यामें कछ न झुठाई । तउ तिन में रामचंद्र गुन मंदिर पितु को अति सुषदाई। हुव ज्यों श्रीपति को चतुर चतुरमुष प्रीतिकरन जस थाई ॥५॥ __End-अथ कवि कल वर्नन ॥ दाहा ॥ मिश्र नरोत्तम नरोत्तम भव छरोरा वंस ॥ रामसिंह के मंत्रगुरु माथुग्कुल अवतंम ॥३६॥ तिनके पुत्र प्रसिद्ध देवकीनंदन भए ॥ विद्याबुद्धिसमुद्र जगत उत्तम जस लए ॥ ३७॥ तिनकं अनुज अनूप एक श्रीकंठ मुहाए । ता जागे भाग जिनन वे दरसन पाए ॥ ३८ ॥ उपजे नंदन मिश्र के चारि पुत्र सुषदांनि ॥ नीलकंठ मोहन बहुरि मिश्र महामनि जांनि ॥ ३९ ॥ चौथे राजाराम पुनि निज मन मैं पहिचानि ॥ सबै भांति लाइक सबै निपट रसिक उर पानि ॥४०॥ कवित्त ।। काम अवतार से अनूप अति रूप करि सील करि सुंदर मरद सुधाधर से ॥ कविता मैं व्यास के प्रमान कहि सोमनाथ जुद्ध रीति जानिबे को पाग्थ से दरसे ॥ बुदि करि सिंधुर. बदन के समान अरु उद्धत उदारता मैं भूमि मुरतरु से ॥ सिद्धता मैं विमल
सिष्ट मूनिवर से नौ जातिम में नीलकंठ मिश्र दिनकर से ॥४१॥ दोहा ॥ तिनके पुत्र अनंदनिधि बड़े उजागर जांनि ॥ तिनको जस मुदिगंत लीं महा उजागर अनि ।। ४२ ।। गंगाधर तिनके अनुज गंगाधर पग्वांन ॥ सोमनाथ तिनको अनुज सब ते निपट अजान ॥४३॥ तानें कुंवर प्रताप की हुकम शुद्ध उर अनि ।। रामचंद्र को चरित यह रच्या महा सुषमांनि ॥४४॥ सत्रह से निन्यांनमी संवत सावन मांस ॥ शुक्ला दसमी वार भृगु भयो ग्रंथ परकास ॥ श्री बदनसिंह वज मंडल नायक जग जाको जस छायौ ॥ ४५ ॥ ताको कुंवर प्रतापसिंह बड़ नामकोगुनीशत (आनंदनि) अधिकारी(या) ॥ इति श्री महाराज कुंवर जदुकुलावतंस श्री प्रताप ॥ ११९॥ सिंह हेतवे कवि सोमनाथ विरचिते रामचरित्ररत्नाकरे अयोध्या कांडे बन प्रवेसा नाम एकोनविंशति शताधिकतमः सर्गः ॥११९॥ संवत् १८३९ ॥ श्रावण कृष्ण मावस भृगुवासरे ॥ ॥ शुभं भवतु ।।
Subject.-श्री मद्वाल्मीकीय रामायण का हिन्दी पद्यात्मक भाषान्तर ।
No. 179 (e). Rāma Charitra Ratnākara, Araṇya and Sundara Kandas by Soma Natha. Substance-Countrymade paper. Leaves-536. Size-15" x 6". Lines per page-11. Extent-15,000 Slokas. Appearance-Old. Character-Nāgarī. Date of Manuscript-Samvat 1840 or 1783 A. D. Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur State.