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APPENDIX II.
पौरानिक सूत सा तत्व ज्ञान समुदाय कहतु नैमिषारन्य में सैौनक रिषिनि सुनाय ३ सूतोवाच नारद मुनि जोगो महा पर शुभ चाह विचार आप सब लाकन निरषि सत्य लोक हित धारि ४ छप्पय उदित प्रभाकर रंग सभा गृह मद्धि बिराजत चहूं दिसि वे दस देह परे प्रति ही छबि छाजत सुंदर सरसुति सहित चतुर मुष जग के नायक जानत सब्बै अर्थ भक्त के बंछित दायक अरु मारकंडे आदि मुनि करत बड़ाइ चाई कै लषि तिन्हें प्रनति धरि प्रेम सां मुनि स्तुति पढ़ी सुभाई कैं ५
End. - यह सुनि बोले राम पुनि निषदनाथ सों आप हैं। प्रसन्न सुनि कान दें मैं जो करत अनाप ५८ मैं न जाइहों ग्राम में चौदह बरष प्रमान ताते प्यारे मित्र यह हठ मति करै निदान ५० दिया और का हाथ कौ में न बांऊ फल मूल है मेरीई राज यह सुनि सुहृदय अनुकूल ६० वट का क्षोर मंगाइ कै कोनी जटा अनूप दाऊ भ्रातनि सोस पे रच्या मुकुट का रूप ६१ हरिगीत छंद ॥ जलपान को करि तहां तीनों रहै भोजन छांड़ि के कुशपत्र तृन की मेज करि के हियो आनंद मंडिके रघुवीर अरु सी संग साए रैनि मै अविकार हो सरचाप तूनहि घरे लछिमन गुह सहित हित टारहीं ६२ दोहा || गुह समेत सौमित्र तह उर मैं पू िसनेह चहुं और देषत रह्यौ नहिं कहलानी देह || ६३ ।। इति श्री सोमनाथ विरचिते रामकलाघरे मंत्रमा मयूषः ५ श्री राम ।
रामचरित्र वर्णन ।
Subject. - श्री No. 179 (d). Rāma Charitra Ratnākara, Ayodhya Kanda by Soma Natha. Substance- Country-made paper. Leaves - 272. Size-15" x 6". Lines per page — 11. Extent —7,480 Slokas. Appearance - Old. Character — Nāgari. Date of Composition—Samvat 1799 or 1742 A. D. Date of Manuscript-Samvat 1839 or 17:2 A. 1). Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur State.
Beginning. - श्रीमते रामानुजायनमः ॥ अथ अयोध्या कांड लिष्यते ॥ दोहा || दिनमणिकुन अवतंस जय दसरथ नृपति कुमार || रामचंद प्रानंदनिधि त्रिभुवन के करतार ॥ १ ॥ अति निरमल मन में समभि हित सरसाय अपार बागे करि सत्रुघ्न कों भरथ गये ननसार || २ || बड़ी चतुष्पदी | प्रति प्रदर सहित वसत ननसारहि सुष हित दाऊ भाई । निज तनय नेह करि पाले हयपति मातुल लिये बड़ाई || पै लछिमन राम वृद्ध भूपति की कबहु न सुधि बिसराई ॥ नित पैसेहीं सुधिरहति सुतन की दशरथ मन मडराई || ३ || दोहा ॥ बल विक्रम करि भरथ जू महा इंद्र परमांन ॥ अरिमर्दन शत्रुघ्न ग्ररु लाइक वरुन समांन ॥ ४ ॥