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धरम रन वरवीर भृगुवंसमनि नीरनिधि तरन अरिदरन स्वर काज पर || हत्थ हल धरन समरत्थ बलि करन गुन गत्थ तरुनायतन किलिकि छबि बाज पर नंद नृपनंद बृजचंद आनंदमय रहत रछ पालन वलेस महराज पर || १ || महाराज बृजराज नंद-दन जगवंदन सगुन सचिदानंद छंद बरनन स्वर कंदन पूरब पुरुष पुरान भान हिमभान अच्छ कर भासमान दिनमान दान समनद प्रत्यच्छ कर ॥ जगदोस ईस सुभ सीस मान महि मंडन जस जगमगत जयचंद वंस परिसंस प्रति अंस रूप सेाभित जगत २
APPENDIX II.
निर्माण काल
वसु विधि व वधु वत्सरहि श्रावन सुदि गुरवार सरव सिद्धि त्रयोदशी भयौ ग्रंथ अवतार ॥
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End. – कुट्टमित यथा कवित्त ॥ बालं बिनु वनत न सषियां सहेलिनु सां अधर रदन कद आरस उदात है साग्म नयन आरसी में निरषत हिय हरषत वाढ़त सुहाग सरसेातु है । भेंटति न और भांवती सा भुज भरि अंग अंग लागि उठे डरि दरद
पातु है कंचुको कसति उगमति प्रति कसकति नाह नेह समझि उछाह मन हातु है || १८ || दादा || पिय समीप अभिलाष जब परिपूरन नहि होय ॥ विहित हाव सा जानिये यह वरनत सब लोय ।। १९ ।। विहित हाव यथा ॥ सवैया ॥ बैठे हैं फूल को सेज मजेज में मेह सौ नेह नया उनया री ॥ चाप चढ्यो चित चाव बढ्यौ बढ़ि सातुक अंगनि अंगु भयो री ॥ चूमन चाह्यौ कपाल को कांन्ह हिये अभिलाष तहां उदयौ गे सोल संकोच सौ तौ लगि सुंदरी मंदिर दीप बढ़ाई दया री ।। २० ।। दाहा ॥ प्रांये पियै न आदर धरति चित अभिमान || T बिब्याक वषानियै हाव भाव परिमान ॥ २१ ॥ इति विव्याक जया ॥ इति श्री मन्महाराज जदुकुल वंसावतंस व्रजेन्द्र नंद नृप नवल सिंघ विनोदार्थे साम कवि विरचिते नवल रस चंद्रोदये हावादि भेद कथन नाम सप्तमेाल्लास ॥ ७ ॥ शुभमस्तु ॥
मंगलाचरण, राजवंश वर्णनादि ।
स्वकीया भेद ॥
परकीया भेद ॥
अष्ट नायिका वर्णन ||
उत्तमादि भेद वर्णन | विरह दशा वर्णन ॥
हावादि भाव कथन ।
Subject. — पृ. १-३ पृ. ९ पृ. १४
पृ. २४
पृ. ३२ पृ. ३४ पृ. ३६
No. 179 ( a ). Brajēndra Vinoda, Dasama Skandha Bhāshā Uttarardha by Sōma Natha.
Substance-Country-made