________________
348
APPENDIX II.
जासु कृपा निर्मल मति पाऊं २ सौच क्रिया करि प्रात सुद्ध तन हाय निरालसा करि प्रासन एकांत मानसी ध्यान धारिय अस ३ नाभि कंद उद्भूत सुकदला कुसुम समाना स्निग्ध वर्ण पत्राष्ट हृदय पंकज धरि ध्याना ४ रामनाम तै करि प्रफुल्ल पंकज ता ऊपर भाव साम सूयाग्नि धरि मंडल उत्तरोत्तर ५ ता ऊपर धरि दिव्य रत्न सिंहासन अनुपम तन्मध्ये श्री राघवेन्द्र रवि काटि प्रभा सम६ उर धरि सांगोपांग ध्यान सावर्णय यथाकम बरनत नखसिख राम ध्यान मानसो हरन श्रम
End.-रामध्यान मुनि सीषि सुनावै जे मन लावै श्रीराम कृपा ते राम धाम ते निश्चय पावै ११० छिमहु सजन अपराध भाव नृनाधिक जानो प्रेरक प्रेरत यथा तथा फुरि आवत वानी १११ वसु मुनि धृति ईति वर्ष राम नवमी वुधवारा ॥ जन्म समय श्री राम ध्यान लीन्ह अवतारा ११२ इति श्री मद्भगवद्भक्त जन प्रसादालब्ध यथामति शिवनंद विरचितं श्रीरामध्यानं संपूर्णम् ॥ रामालय धनुर्वाणं चक्रं नारायणालये कृष्णालय वहिपुच्छं त्रशूलं शंकरालये १
Subject.-परब्रह्म परमात्मा अथवा श्री रामचंद्र का ध्यान ।
No. 175. Dhéka Charitra by Siva Prasāda. SubstanceCountry-made paper. Leaves-7. Size-10" x 4". Lines per page-8. Extent-250 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of Composition--Samvat 1900 = 1843 A. 1). Placo of Doposit-The Library of the Rājā of Pratāpagarh.
Beginning.-श्रीगणेशायनमः ॥ अथ ढेक चरित्र ॥ दोहा ॥ गुरु गणपति गौरीश के चरण कमल धरि शीश ॥ पुनि वंदा सुर सारदा वुधिवर देहु अशीश ॥१॥ सुभ संवत वनईस से तपस मास रविवार दुतिया तिथि महिपाल नृप मन महं किया विचार ॥२॥ शिवप्रसाद ते हंसि कह्यो नृप खेलत जा ढेक । एक छेद में कीजिए जो सब वस्तु अनेक ॥३॥ हुकुम पाई नरनाथ को मन मंह करि करि गौर ॥ वस्तु जारि मसना महित रह्यो दोहरा और ॥४॥ कवि काविद बुधिवर नृपति षेलत हात प्रमन्य । कविताई की रीति यह जो जानत सा धन्य ॥५॥ कवित्त । कामिनी कहार की कन्नौज ते कटारी गई कुंज रसवारी और कैथ तरे वाम है। असन कचौरी लै कटोरा में कटोरी पानि कंकन कलित और किंचुकी विलास है। कील काल है रहा है लोगन लोगाइन मे दूढ़ि दूढ़ि लेत सबै दीरघ उसास है। गौचकही प्राइ गई वदन देषाई दई कांष तरे बाल बस सहर हहास है ॥१॥दोहा॥ कविकुल कोविद प्रथमही गणपति चरित अनंत । विविधि भांति वरनन कियो विधि हरिहर बुध संत ॥२॥