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APPENDIX II.
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अनूप वर रूप से भरे ॥ कहा कहीं मौन रहा हग देषत हरे ॥ गोरे सांवरे किशारे मारे उर में अरे ॥ लैोने हाथन में दाने धनु भाथन धर॥ सुधामुषी सिया देषि पिया देवी से वरे ॥३॥
___End.-राग मलार पाडा तितारा ॥ सिय पिय झल दिये गल वाह ।। मन भावै सपियां झुलावै सावन गावै भरि अनुराग ॥ चहु दिसि ते घन घुमड़ि घुडि आये व्योम वितान वनाये वालत विहंग उपवन वाग॥ सुधामुषी श्री जनकदुलारी मागे सुरंगी धारो अवधविहारी प्यारी पाग॥ ४८॥ इति श्री सुधामुषी कृत पदावली सम्पूर्ण शुभमस्तु । लिषि मिथिलेस किशोरी शरण ।
Subject.--विविध पदा के संग्रह । No. 169 (6) Sarva Särõpadība by Sudhā Mukhi. Subs - tance-Country -made paper. Leaves ---16. Size-8" x 4". Lines per page-12. Extent-576 Slokas. Appearance--- Old. Written in Prose and Poetry both. Character--- Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshimana Kota, Ayodhya.
Beginning.-- श्रीगमा विजयते ॥ अथ सर्व मारोपदेशायं लिख्यत ।। दोहा ।। वंदां श्री सियरामपद सकल ज्ञान के धाम । भक्ति सहचरी पाइये जाहि कृपा अभिराम ।।१॥ इक दैवी संपत्ति है इक आसुरी विचारि ॥ रूप दुहुन को कहत है सुधामुखी उर धारि ॥२॥ गहें प्रामुरो त अमुर देवी देवन लीन ।। देव अमुर संज्ञा उभय जग नर हात अधीन ॥३॥ असुर संपदा गहत ही जीव परत भव कूप ।। प्रष्ट होत निज रूप से जा जाचत जन भूप॥ ४॥ मुर संपति पु । जो गहे ते पावहिं हरिधाम ।। चौरासी वंधन कटहिं मिटहिं नरक दुःख ग्राम ॥५॥ अव वार्त्तिक में दाऊ संपत्ति के विस्तार कहत हैं ॥ प्रथम पुरुष पार प्रकृति दोउन के संयोग करि मन प्रगट भयो । तिन ही मन की संकल्प विकल्प दा शक्ति ॥ असेही करौंगा यह संकल्प ॥ पुनि असेही मुख होय है कि नहीं यह विकल्प है ॥ ___End.-निगमागम को सार यह कोटि ग्रंथ सिद्धांत ॥ अल्पवुद्धि हित वोध के कीन्हो मन करि शांत ॥ १५ ॥ भक्ति ज्ञान वैराग्य को प्रादि सकल गुणधाम ॥ सर्वसार उपदेश यह ग्रंथ नाम अभिराम ॥ १६ ॥ विषई को मन ना लगै जिहि माना जगसार ॥ ज्ञान भक्ति वैराग युत सा नर करहिं विचार ॥१७॥ नित प्रति देष ग्रंथ यह पुनि धारै उर मांहि ॥ सुधामुखी तेहि मुख सदा भव वंधन डर नाहिं।। १८॥ चाहै नाना ग्रंथ पढ़ि चाहै यह पढ़ि लेहु ।। सार यही उपदेस है सुधामुखी करि नेहु ॥ १९ ॥ इति श्री सुधामुखी कृतायं सर्व सरोपदेशः