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APPENDIX II.
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No. 167. Alankāra Dipaka by Sambhū Nātha Mibra. Substance-Country-made paper. Leaves-80. Siz0 - 5 inches x 10 inches. Lines per page--21. Extent-815 Slokas. Appearance-Old. Written in Pross and Verse both. Character --Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1904 or A. D. 1847. Place of Deposit-Pandita Sivādhāra Pandeya, Professor, Muir College, Allāhābād.
_Beginning. - श्रीगणेशायनमः ॥ अथ अलंकार दीपक लिप्यते ॥ दाहा॥ गणपति लषि शिव सोस में गंगा मेत उदात । सिंदुर मिस निज सिर धरो सरस्वती को सात ॥ श्रीगुरु कवि सुषदेव के चरनन का परभावु ॥ वरनन कों हिय देत धरि वरनन को समुदाउ ॥ बरनि संजोग सिंगार मैं राधा राधानाथ ॥ अलंकार दीपक करत दाहन संभूनाथ ॥३॥ उपमा को उदाहरन ॥ वाचक साधारन धरम उपर मानरु उपमेय ।। राचा स्वों जहं होइ वहिं पूरन उपमा गेय ॥४॥ज्यों जैसै समतून जिमि सरि समान लो जानि ॥ सारा सौ इन आदि दै वाचक विविध बषांनि ॥५॥ उपमाहं उपमेय मैं जो समता को हेतु ॥ ताहि कहत सम धर्म है सबै सुकवि करि हेतु ॥६॥ जाकी समता दीजिये ताहि कहत उपमान । जाका वरनन कीजियै सा उपमेय प्रमान ॥ ७ ॥ पूर्णपमा को उदाहरण ॥ पिय तिय सुवग्न वेनि मी लसत कलिंदी कूल ।। पता श्रवन फल उर धरै हंसत भरत से फून ॥ ८॥ अथ लुप्तापमा को लक्षण | वाचक साधारन धरम उपमानरु उपमेय ॥ इन मैं इक है तीन बिन लुप्तोपमा विधेय ॥९॥ इक इक लोपे तीन पुनि छै छै लापे चारि ॥ तीनि लेापि इक पाठयां लुप्तोपमा विचार ॥ वाचकलुप्तोपमा को उदा० ॥ पापु हियहि रहे तऊ लषि माहे नंदलाल ॥ भई वसीकर जंत्र तति तिय उर गुंजामाल ॥ ११ ॥ धर्म लुप्तोपमा को उदा० ।। मैं छल बल ल्याई लला भागन ते लषि लहु ॥ भयो तरुनि तन वरन ते सुवरन सौ सव गेहु ॥ उपमान लुप्ता को उ० ॥ कुंदन की लागत गली जाकी तनकी छांह ॥ राधा सो नहि और तिय हम दंषी वज मांह ॥ १३ ॥ और उ० ॥ मैं लषि पाई तरुनि हक वजनायक नंदनंद ॥ केहरि कैसी बीन कटि गज कैसी गति मंद ॥१४॥
End.-॥ लछन दोहा ॥ वेदादिक के वचन अरु लोकिक वचन जु होत ॥ सन्द प्रमान कहैं तिन्हें सकल कविन के गोत ॥ सब्द प्रमान अलंकार को दोहा ॥तू सव जप तप छोडि दे करु गंगाजल पान । यह द्रवरूपी बत्त है भाषत वेद पुरान ॥ और उदाहरन दो ॥ नैनादिक उपमेय हैं कमलादिक उपमान ॥ या मैं कछु कहिवे नही भरत वचन परमान॥ बिन देषी बिन ग्रंथ की सुनो तु केवल कान । ऐसी कछु प्रसिदि जंहं पतिन्हं प्रमान ॥ पतिन्ह को