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APPENDIX II.
पृष्ठ ३-१२ स्वामी हरिदास जी का यश वर्णन । (श्री पासुधीर जू को
अभिलाष, वृन्दावन वर्णन, जन्म स्थान, स्वामी जी को नख
शिख, स्वामी रस सलिला, आर यमुना वर्णन ) ,, १३-१४ श्री विहारी विहारिण जू के प्रकट हायवे की भूमिका वर्णनम् ।
,, १५-२५ परस्पर रसिकनि के वैन । ___No. 166 (6). Maiju or Sarasa Manja vali (Satika) by Sahachari Sarana. Substance-Country-made paper. Leaves-- 32. Size-11 inches x7 inches. Lines por page-18. Extent-1440 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-Pandita Radha Chandra Vaidya, Bada Chaubē, Mathurā. ___Beginning.-(टीका) श्री श्री श्री रसिकराजदुर्जयति ॥ स्याम सुन्दर प्रति विनय ॥ चरन चंद्र नख इति ॥ चरण जे हैं तिनि के नषचंद्र चारु सुन्दर हरै तम ॥ अज्ञानरूपी तम अंधेरी ताहि हरै दूरि करें ॥ अथवा तम तमोगुण ताहि दुरि कर ॥ कह्यौ है॥ चरन नषचंद्र का हरत तिमरावलो ॥ पुनः कैसे हैं नषचंद ॥ ताव सिताव नसाहै ॥ ताव जे अन्य प्रकास तिन के ताव कहैं ते सीघ्र ही दूरि करत हैं। राधे रहैं हमेंसा कहैं ते सदैव । काहे की सहाई ।। रस राहैं रसके जे मार्ग तिनकों ॥ रस कहा ॥ प्रीति प्रेम पानंद इत्यादि । वर वाह जे हैं ते पुनः सहचरि सरन कहैत हैं ॥ हे कपाल देहु तुम तन तमाल । तमाल रूपी जो तन ताकी जे छवि छै हैं ॥ अंग अंग की छवै तेई भई छाया सां देहु ॥ अर्थात हमारी त्रैतापनि को दूरि करी ॥३॥ (मूल) श्री श्री श्री रसिकराजेद्रोर्जयति ॥ मंजु ॥ चरन चंद्र नष चारु हरै तम ताव सिताव न सांहैं। राषै रहें सहाय हमेसा रस राहैं वरवा ॥ सहचरि सरन कपाल देहु तुम तन तमाल छवि छा ॥ अति सै अति परजी मरजी करु नजरि नेह दो चाहे ॥१॥
End.-मृतु मकरंद राग पानंद पराग मिल विमल विराग रति परिमल धीर हैं ॥ प्ररथ प्रमोल मुकता ली त्यां कलोल भाव सुवरन घाट है प्रताल छवि नोर हैं॥ रसिक रसाल मन मधुप मरालनि को मीन धी विसालनि को तामै अति भोर हैं। सरस मंजावलो को कीया है तिलक मंजु मानहुँ कंजावली को मैन संग भीर है ॥१॥ असे जे स्यांम स्यामां हे तिनि की भजि कैसे है स्याम स्यामां जन जे हैं तिन के मन जे हैं मंजु तिनि के विकासी हैं ॥४॥ १४७॥ इति श्री सरस मंजावली संपूर्णम् ॥
Subject.-भक्ति और ज्ञान के पद ।