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APPENDIX II.
No. 166 (a). Lalita Prakasa by Sahachari Sarana. Substance-Country-made paper. Leaves-25. Size-11 inches x 7 inches. Lines per page-11. Extent-307 Ślokas. Incomplete. Appearance — New. Character — Nāgari. Date of Manuscript--Samvat 1950 or A. D. 1893. Place of DepositPandita Radha Chandra ji Vaidya, Bade Chaube, Kuñja Bihāri ji kā Mandira, Mathura.
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Beginning. – हरिं वंदे ॥ अथ ललित प्रकाश प्रारभ्यते ॥ मंगला चरणम् || छन्द कवित्त ॥ आनी के सरग ताकों राखिये सरण स्वामी सन्त प्रति पालक अनन्त सुख दीजिये || पद प्ररिविन्द मकरन्द को मलिन्द करि प्रति अभिलाष हरि भक्ति युज जोजिये || भनित लता जा ताहि फूलित फलित करौ तात मात बालक ज्यों कृपा प्रति कीजिये ।। एहा वर स्यामा स्याम तजिके हमारे दोष दासन की दास जानि दंडवत लीजिये || १ || नमो नमो स्वामी हरिदास जू अनन्य धन्य नमो नमो विपुल विहारी दासि गांऊं में ॥ नमो जय नागरी सरस नरहरि रसिक नमो नमो ललित किशोरो मन लाऊं में ।। मोहनी ललित राधा सरण कृपा का सिंधु नमो नमो वृंदावन चंद उर ध्याऊं में ।। नमो नमो स्यामा स्याम सखी रसरंग संग अंग अंग प्रेम से उमंग सोस नाऊं में ॥ २ ॥ छन्द छप्पय || मद मत्सर अरु दंभ कपट पाखंड विखंडन ॥ कोह मोह भय शमन दमन दुख जन मन मंडन || करुणा मंगल मूल ज्ञान विज्ञान प्रपाइक ॥ कीरत विजय विभूति प्रमित अभिमत फलदाइक || गुणगण अनेक गावत रसिक रसिक राज सुखमा सुखद || भवनिधि प्रभार जल जान जनु मम नमामि हरिदास पद ॥ ३ ॥
End. - नंद नंदन वृषभान किशोरी ॥ रूप अनूप मनेाहर जोरो ॥ ब्रज वनिता सविता तनया तट || रसिक विलास निकट वंसोवट || १०८ ॥ छंद सारठ ॥ निज निज रिजु उरभाइ ॥ तिहिं अनुगामी हम सकल || विपुल विलोकहु चार जिम अविलोकित रहत नित ।। १०२ ।। कुंद चापई ॥ रसिक समाज आजु भल आवा ॥ दरस परस आनंद छवि छावा || वचन विलास मिठास समीती ॥ कहत सुनत वाढत रसरोती ॥ १२० ॥ कर्ता की युक्ति ॥ छंद दोहा ॥ उमगि उमगि+++ अपूर्ण०
Subject. - निम्बार्क (ललिता ) मत के प्राचायों का यश वर्णन । पृष्ठ १-२ वन्दना आचार्यों को ।
३ ग्रन्थ विषय |
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