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APPENDIX II.
___No. 165. Bhasha Yoga Sadhana (Maha-Swaridaya) by Rishikesa. Substance-Country-made paper. Leaves - 71. Size --5] inches x 4 inches. Lines per page-7. Extent776 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of Composition-Samvat 1808 or A. D. 1751. Place of Deposit-Pandita Chandra Sõna Pujārī, Gaigāji kā Mandira Khurja, Bulandasahar.
Beginning.- श्रीगणेशायनमः ।। छप्पे छंद । दुरदवदन इकरदन सदा सुषमदन विराजत ।। ईसत नयन गरोस मीस रजनी सजु छाजत ॥ रिद्धि सिदि बुद्ध देत जाहि कछु विरमुन लागै॥ जे मुमरै चित लाई भागिता जन को जागै ॥ रिषीकेश शकल कल मद हन विघन विनासक अघ हरन ॥ जै गिरजा नंद परम गुरु मन कामदा मंगल करनः ॥१॥ अथ नृतक छंद ॥ आदि धरी ध्यान सुषद स्याम को ॥ मोहि भरोसा है जु उनही के नाम को प्राण सकल प्रानन को जानिये ॥ देवनि को देव साई मानिये ॥२॥
__End.-वा तनु जोग सिद्धि नही हाई ।। जो लो सुचित न साधै काई ।। जो लो लहै नहो जगदीसै ॥ तैा लैं झूठ सांच सांदीसै ॥४१॥ जव सांची पावैद्ग माही ॥ साऊ संसै रहै हीय माही ॥ तातै तजी जगत की पासा ।। निश्चै एक व्रम्ह सुष समा॥ ४२ ॥ इति श्रीमहास्वरोदय ज्ञानदीपके ॥ उमा महेस्वर संवादे रिषीकेस कृते भाषा जोग साधन नाम पप्टम् प्र
Subject.-योग। ।
Note.-पद्य । प्रागरा निवासी कवि ऋषिकेश कृत भाषा योग साधन । नं. ७ के रचयिता भी ये ही प्रतीत होते हैं। दानो पुस्तके (नं० ७-८) एक ही जिल्द में बंधी हैं। दोनों के संक्षिप्त नामों के चिन्ह सर्वत्र 'स्व" से ही लिखे गये हैं। तथा पुस्तकों के संरक्षक महोदय का भी कहना है कि पुस्तक सम्भवतः एक ही ग्रन्थकार की हैं। पुस्तके वड़े ही स्पष्ट और सुकर अक्षरों में लिखी गयी हैं। इनके लिखनेवाले संरक्षक के पितामह पं० दुर्गाप्रसाद जो थे।
२ यह पुस्तक कवि के मित्र जीभनदास के कहने से संवत् १८०८ में बनायो गयी थी। यथाः-अष्टादस सत प्रष्ट सुसंवत जानिये। चैत्र शुक्ल तिथि तीज सोमवार ज्ञान दीपतिहि।
३ पुस्तक अपूर्ण प्रतीत होती है क्योंकि अन्त के प्र के बाद को कोई बात नहीं पायो जाती।