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APPENDIX II.
पृष्ठ ७१ श्रीराम जी का ससैन्य और सपरिवार सरयू तटस्थ तीर्थों का जाना तथा श्रीसीताराम विहार वर्णन । अध्याय ७१
पृष्ठ ९० श्रीसीताराम की विविध लीलाओं का वर्णन ।
पृष्ठ १०० श्रीसीताराम का चित्रकूट में गोलोक धाम तथा वृन्दावन की रचना और वृन्दावन विहार वर्णन । १०२ ग्रन्थ समाप्ति
No. 163. Tikā Gita-Govinda by Raya Chanda of Gujarāta. Substance-British-made paper. Leaves-40. .Size - 102 inches x 44 inches. Lines per page - 8. Extent— 150 Ślokas. Appearance — Old. Character— Nagari. Date of Composition-Samvat 1831 = A. D. 1774. Date of Manuscript - Samvat 1933 or 1876 A. D. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.—श्रीगणेशायनमः ॥ अथ गीतगोविन्द प्रारंभः ॥ मंगलाचरन हर सरसती गाय पाय दुहुन के बंदि पुनि ॥ भेाजदेव स्रुत ध्याइ श्रीजयदेवहि प्रनति कर ॥ १ ॥ जिन यह गीतगोविन्द भूषन गुन रस धुनि सहित । श्रीराघव व्रजचंद रहसविलास किया प्रगट ॥ २ ॥ ताको प्रति मंदि मंद है। भाषा भावारथे ॥ चाहत किया सुकंद स्वामो सासन पाय वल ॥ ३ ॥ नागर ज्ञाते प्रधीन हीन छीन मति यज्ञ प्रति ॥ रायचंद द्विज दोन नाउ गाउ गुजराति जेहि ॥ ४ ॥ जानत कछू न भेद कवित के गुन दोष की ॥ कीजे कृपा अभेद दीजे सुमति दयाल प्रभु ॥ ५ ॥ सुजन सजनता सार जे जनि तन सैा कहत अव ॥ ग्रंथ लिया (अवतार) तासु प्रयोजन हेत हित || ६ || नगर मुरशिदाबाद आदि सुरसर तीर सुभ ॥ सुवस वसै प्रविषाद जहा आसरम बरन मव ॥ ७ ॥ तेहि पुर अंतर माहि मा महत महिमा सर नाहि जाकी पुरक येक ॥ ८ ॥
End.—कृष्ण कृपानिधि किरपा करो ॥ तव यह सुमति यानि उर अरी ॥ डालचंद नृप या दई ॥ १ ॥ विविध राग जे रंग रस भरे ॥ ताल तान के साचे टरे तिन मै साचि साधि सधराई || लछमन दास गुसाई गाई ॥ २ ॥ अठारह सै अरु इकतीसा संवत विक्रम नृप अवनीसा ॥ सित नवमी ससि दिन मधुमास ॥ गीतगोविंदादर्श प्रकास || ३ || श्रीमद्वाज डालचंद्रस्याज्ञापरिपालक रामचन्द नागरेण विरचिते गीतगोविंदादर्श ग्रन्थ परिपूर्णे द्वादशावलोकनं नाम समाप्त ॥ संवत् १९३३ श्रावन शु० ७ लि० श्री प्रयोध्या मध्ये ॥
Subject. - गीतगोविन्द की भाषा टीका कविता में ।