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APPENDIX II.
तुम हा रघु रतन हमेश प्रेम स्वधन को स्वधनता उचित न मुहि महि मेस ७ नाम रतन हरि रतन हरित। ते तोष न ताप तप्येो तरल तृष्णा तरनि तापर तर निज ताप ८
End. - दशरथ राज कुमार वर दशरथ अज अवतार दसमुष सत्रु संघारि सत दसमुष सुष सहचारि ९८ कर सहस्र कुल मार दमि कर सहस्र भार अनुज अनुग सतकारि सत ताहि जुहारि हमारि ९९ साधन साधन होय जो हरि हरि हित हित दीय जीवन जीवन सफल सिय पीय सुरस जहा पीय- १०० संवत ससि दृग षंड ससि चैत दरस ससिवार दूरादूरार्थ दई दाहावलि दातार १०१ इति श्री दूरादूरार्थ दोहावलि शतक समाप्तम् शुभं भूयात् १९२३ मिति ज्येष्ट मासे शुक्ल पक्षे तिथैा ७ शनिवासरे ।
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Subject. - शब्दों के अनेक अर्थ
No. 162 (c). Jamaka Damaka Dōhāvali by Ratna Hari. Substance- Country-made paper. Leaves-6. Size-11 inches x 3 inches. Lines per page-10. Extent-160 Ślōkas. Appearance—Old. Character —— Nāgari. Date of Manuscript— Samvat 1923 = 1866 A. D. Place of Deposit-Saraswati
Bhandāra, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning. - श्री रामाय नमः ॥ अथ जमक दमक दोहावली प्रारंभ | राम जनम नवमी गुनन राम न नवमी जान चेत मास सव चेत चय चैन चैन मनि मान १ सुकल पच्छ अपि सकल के सुकल पच्छ मंदैन तंह प्रगटे रघु रतन हरि प्रगटे प्रचय चैन २ उतसव अमित उदै भव विहि सिव मैं सव ठाम वजी वधाई विविध विधि हरष विविध विधि धाम ३ वाल विनोद वड़े बड़े बढ़े प्रमोद प्रसार लषि जननी सुष ल जननी के अनिहार ४ अधिक सबै विद्या सवै सोषी गुरु गुरु गेह आप मुनि कौसिक कवहु मुनि कौसिक करि नेह ५ ले महि मनि तैं महि मनिधि मुनि गए महिमनि धाइ मष पूरन अरि धरन किय अरि पूरन रन घाई ६ हरि हरषि रिषि होय हिय करषि रषे रिषि हीय पुनि महिमनि सुत रघुमनिहि मुनि मनि महि मनि कोय ७ अथ गोतम तिय को परसि प्रभु पग गोतम भाति गमनी रघुमनि लोक दृष्टि लहि सुक पिय लोक सभाती ८
End.—अथ मुलगन से सुगुरु लषि सुत्नगन गुरु गुन राज नृप तिलकहि. किय नृप तिलक तिलक तिलक सजि साज १२३ करो राजवर राजवर सारस वन सुष सार करि सुमेध असुमेध मुष कलमष कलमष हार १२४ जमक दमक दोहावली सवा सई सियनाथ दई बनाई लिषाइ लई दास रतन हरि हाथ ॥ १२५ इति श्री जमक दमक दोहावली संपूर्णम् समाप्तम् शुभं भूयात संवत् १९२३ मिति: