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साधु सबै दया यैसे गुरु को सरन जु गहिये ॥ ताते
APPENDIX II.
सामान विती पातन ताकै ।। ग्रहन मकर स्त्राद्ध विधि नाकै ॥ अति करै । सोत चरनोदक लै उर धरै ॥ भक्ति स्याम की लहिये ||
End. - श्रीकृष्ण कृपा की बात ।। जिहि तिहि भांति कृष्ण मन आनै ॥ विषै वासना चित्त न सानै ॥ राधा विना कृष्ण का ध्यावै ॥ सा या सुषको लेस न पावै ॥ जुगल जोरी का कीजै ध्यान ॥ सेा सव गावत वेद पुरान ॥ संध्या तर्पन गायत्री तजै ॥। तीन काल से हरि भजै ॥ भक्ति का साधन भक्ति पुनि कही ॥ कर्म जाग कलि परत नसही || जीव दया संतन की सेवा | गुरु सा प्रीति भजै हरि देवा ॥ भगवत धर्म विमुष जो हाई ॥ तासेा यह ध्यान कहियेा मति केोई ॥
जाती से मिलि यह सुष लीजो || जज्ञासी प्रति ताका दीजो || रसिकदास सरनागत है रह्यौ ॥ श्री नरहरिदास कृपा जस कह्यौ ।। इति श्री पूजा विलास श्री स्वामी रसिकदेव जू मुष कमल वानी प्रगट भई सेा संपूरन ॥ संवत् १९२९ माघ कृष्ण ११ ॥
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Subject. - पूजा भावना आदि के नियम
पृष्ठ १-२ गुरू और गुरु लक्षण ।
३ अदिश को दोष ।
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४ - २२ भक्ति के अंग, पांच भाव, नवधा भक्ति, उपासना भेद, नित्यनेम, पूजा, षोडश सषी, शृंगार किया, स्नान भोजनादि विधि ।
No. 161. Yugala Rasa Madhuri by Rasika Govinda. Substance-Country-made paper. Leaves-16. Size-8 inches × 4 inches. Lines per page-16. Extent-250 Ślōkas. Appear&nce—Old. Character—Nagari. Place of Doposit — Bābū Vitthala Dasa Purusottamna Dasa, Visrama Ghața, Mathura.
Beginning.—श्रीराधा सर्वेश्वर जू सहाय ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय ॥ अथ रसिक गोविन्द कृत श्रीजुगल रसमाधुरी लिष्यते ॥ रोला छंद ॥ जय जय श्री हरि व्यासदेव दिन विदित विभाकर भृमतम श्रम अघ व हरन सुषकरन सुघरवर ॥ १ ॥ कृपासिंधु प्रानन्दकंद पति रस भीने || मो से मूढ़ अनेक पतित जिन पावन कीने ॥ २ ॥ | जासु कृपा सु प्रसाद जुगल रस जस कछु गांऊं ॥ सब रसिकनि की हांथ जारि पुनि सीस नवाऊं ॥ ३ ॥ श्री वृन्दावन सघन सरस सुष नित छवि छाजत ॥ नंदन बन से कोटि कोटि जिहि देषत लाजत ॥ ४ ॥ जहं षग मृग द्रुमलता बसत जे सब अविरुद्धित ॥ काल कर्म गुन काम क्रोध मद रहित सहित हित ॥ ५ ॥ परम रम्य बन चिदानंद सर्वोपर साहै ॥ तदपि जुगल रस केलि