SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ APPENDIX II. 323 माधुरी भाय भरि छकि जावै ॥ दोऊ दुहूं रस रंग छके नव रंग उमंग निसा न अघावै ॥ ४॥ संग ही दोऊ रहै रसि पालसि के रस रास विलास छकावै ॥ दोऊ दुहून के अंगनि को अपने कर सेइ सुभाग सिहावै ॥ दोऊ दुहूं मन में दिन राति अनेकहि मांति पानंद बढ़ावै ॥ अंगनि अंग मिलाय रहै तऊ मिलिवे को दोऊ ललचावै ॥ ५॥ दोऊ दुइ दुलराय सुभाय अघाय नही तरसाइ रहे है । दोऊ दुह के उछाह लिए अति चाह उमाह वढाई रहे है ॥ दाऊ दुहू गुन गाय मुरूप लुभाय अपान भुलाय रहे है। दोऊ दुहू उर लाय महा मुष सिंधु समाय थिगय रहे है॥६॥ दोऊ दुहूं को सिंगार सजै रिझवार नेवारि नई सषिपान को ॥ दोऊ दुह प्रिय ऐसे लगे अजु ऐसी न दोप सिषा यषियान को ॥ दोऊ दुहू के सुजीवन प्राण सुधान सजीवन यो झषिपान को ॥ दोऊ दृहू दरसै सरसै पे तऊ सरसै तासै अषिमान को ॥७॥ दोऊ दुहं को सिंगार संवारि जु है वलिहारि सुप्यार पगे रहै ॥ दोऊ दुह के निहारी मुअंग अनंग तरंगनि सा उमगे रहै ॥ दोऊ दुइ रहसै विहमें विलसै हुलसै रतिरंग रंगे रहै ॥ दोऊ कहै रस को वतियां दिनहूं रतियां छतियां में लगै रहे ॥ ८॥ दो० ॥ युगल सनेह विनोद यह अधिकाग्नि हित पास ॥ रच्या रमिक वल्लभसरन करन प्रमोद प्रकास ॥२॥ नरम सम्बासखि भाव जेहि जगरति लगति गलानि ॥ सियपिय रासविलास को अधिकारी तेहि जानि ॥२॥ Subject.-श्री प्रियाप्रीतम का प्रेम । No. 159(6), Prēma-Chandrikā by Rasika Vallabha Sarana. Substanco-Country-made paper. Leaves-8. Size-7} inches x5 inches. Lines per page-20. Extent-250 Slokas. Appearance--Old. Character-Nägarī. Date of Manuscript -Samvat 1933 or A. D. 1876. Place of Deposit-Sad-GuruSadana, Ayodhya. Boginning.-श्रोसीतारामा विजयते ॥ अथ प्रेमचन्द्रिका लिष्यते ॥ दोहा ॥ रसिक जनन्ह के वचन पर लिष्या रसिक पद ध्याइ | पढ़त मुनत समुझत गुनत प्रेम प्रमुद सरसाइ ॥१॥ अथ भक्तापराध ॥ मकन आयु सत करम में जो पे वितइ हाइ ॥ भक्तन के अपराध यक डारत पलमें पोइ ॥ २॥ और सकल अघमुचन हित नाम जतन है नीक ॥ भक्त द्रोह का जतन नहिं होतव जाकी लोक ॥ ३ ॥ निंदा कन की करत सुनत जे है अघरास ॥ ये तो येकै संग दाऊ वेधत भानु सुत पास ॥ ४॥ सारठा ॥ भक्तन सा अभिमान ॥ प्रभुता पाइ न कीजिये ॥ मन वच निश्चय जान ॥ येहि सम नहिं अपराध कछु ॥ ५॥ ___End.-रसिक रहस संग्रह रस प्रेमचन्द्रिका नाम ॥ लिख्या रसिक वल्लम शरन सुरति करन अभिराम ॥ ३० ॥ प्रेमचन्द्रिका जा पढे समुझि करै दिढ़ नेम ॥
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy