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APPENDIX 11.
नाल कछ कछनी अरु चंपे को कल दीन्हो किनारी सिंगार के रामसषे पिय फूल विचित्र कढ़यो चित्रकूट विहारी २ ___End.-राम के उपासक जै वाले नृत्य राघव की राघो मंडली के सषा महा व्रतधारो है दोन्है भुज धनुष वान गावत प्रमोद वन पेटक चौगान आदि लीला वनचारी है मन ना मिलावै कडू असे रसिकन विना जेते सुर सिद्ध और भूप नर नारी है विधिहू निषेध छाड़ि रूप मै रहत छाके रामसखे हम तो तिनही की वलिहारी हैं १७ जल पै पथरा तारे मुनि के मृग मारे वाहन वन्दरा प्यारे करे अस काम है ॥ जग की मर्याद मेटि पग सेा अहिल्या भेटि रहे दस को ग्यारह हजार वर्ष स्याम है ॥ अनहानो होनी लीला महा तेजवानन की रामसखे सकल हो जानो अभिगम है॥ तैसे देखो करि करि वे माद काटिन्ह हूं एते पै कहावत मर्याद सिन्धु राम है ॥ श्रीसीतावल्लभो जयति नृत्य राघवो विजयति ।
Subject.-विविध कवित्तों के संग्रह।
No. 158(c). Mangalashtaka. by Rama Sakhe. Substance-Country-made paper. Leaves-4. Size-98 inches x44 inches, Lines per page-8. Extent-40 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of DepositSaraswati Bhandara, Lakshmana Kotas, Ayodhya. ___Beginning.-श्रीजानकीवल्लभा विजयत ॥ घटिका द्वै निशा अवशेष जानि जूथ जूथ सजि कै सिंगार आई नागरी नवीनी है ॥ प्रिया मन भावन जगावन को प्रातुर है द्वादस स(ह) राज कन्यां रस भोनो है ॥ कीड़ा रति कंज केसु मंगन में रंग भरी चुटको वजावै मंद अतिहो प्रवीनी हैं ॥ गान कला चातुरी गंधर्व कन्या चंद्रमुखी सप्त स्वर जील की पालापै मृदु कोनी है ॥१॥ नृत्य करें विद्याधर कन्या अग्र गन्या मंजु ताल दैन धन्या सिद्ध कन्या मन भाई है ॥ मंद मधुर वीना मृदंग आदि जंत्रन को किनरी वजावै कल सुन्दरी सुहाई है । प्रस्तुति करै पुण्य मुत वंदी जन कन्या जे ल्याई मधुपर्क गाप कन्या मन भाई है ॥ नृत्य वाद्य गान को अवाजै मुनि कानन में मुजान जू नै जानकी जगाई है ॥ २ ॥
End.---अद्भुत अषंड महा मंगल स्वरूप राम मंगल सिया जू सब मंगल पटरानी हैं ॥ ९॥ रामसखे मंगल सुहृद प्रिय नर्म सखा मंगल चारुशिला प्रादि सषी सुष दे(दा)नी हैं । मंगल प्रमोद बन सरजू तट रत्नाद्री चिंतामनि भूमि अवध मंगल की षानि है ॥ मंगल मधुपर्क भाग धरै पिय प्यारी को मंगल करि पारती सहेली हर्षानी है ॥१०॥ दाहा ॥ प्रात ध्यान सियालाल को मंगल अष्टक नाम ॥ पढ़े सुनै तिन पर सदा दुवै जानकी राम ॥ ११॥ इति श्री रामसषे कृत मंगला