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APPENDIX II.
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उत्तम उत्तम चंद ॥ रामप्रसादि भ्यो तनै तास महा मतमंद ॥ ४१३ ॥ दोहा॥ चंद बार रिष निध सहित लिष संवत सर जान ॥ चंदवार एकादमी माधव बदी उर धान ॥ ४१४॥दोहा॥ निगम वाव सुभ छेत्र जिह कालिंदी के तोर॥ इन्द्र प्रसत सनपुर बसै (स)त इंद्रपुरी मत धीर ॥ ४१५॥ इति श्री मत महाराज कृष्णचंद्रका सम्पूर्ण ॥ यथा कवित्त ॥ जब ते कढ़ माहै नभमंडन मद्यौ है जाल विरहिनि बाल घर घर हा हा हूं त है। पवन संग लगि तिल परि अंग याकी वोर दूसरा दिनेस देषो रचना अभूत है । सीन कर नानु कहि झूठी जिन हाइ पाली बावरी विलोक्यो कहू पील फन तूत है। छोर निधि जात कहूं मैसे उत्पात करै बीस विले षीस सिवा डव को पूत है ॥ २२२ ॥
Subject.- नायक नायिका भेद । ___No. 155. Sitāyana by Rama Priya Sarana. SubstanceCountry-made paper. Leaves --27. Size-71 inches x 2 inches. Lines por page-13. Extent-800 Slokas. Incomplete. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.-श्रीजानकीवल्लभा जयति दाहा श्रीसीता श्रीराम युग चरण कमल करि ध्यान वरणत भाषा में कछुक वेद पुराण प्रमाण नवल किशोरी जानको नवन लाल रघुनाथ नवन चरित तिनको कहा नव न नेह के साथ सिया चरण अनुराग में माहि सिर बिनु कछ न साहाहिं तातें सीतायण कहां रामायण जेहि माहि सिग सिग रसना रटे हटे न एक निमेष सिया महल तव सहन तै परे विमन हग देष जहं पनंत ब्रह्मड की विभव लजावनि हार येक येक तहं देषिये वस्तु अनेक प्रकार सत चित आनंद रूप सब ब्रह्म विष्णु शिव ध्यान उमा रमा शारद शची निशि दिन करति वषान जहां नवन प्रीतम पृग निशि दिन करत विहार षटऋतु का जहं कुंज वहु रचना विविध प्रकार सकल विमल चिन्मय अकल परानंद सुष रूप नवरंग मणिमय लपत सा सव आतमा सरूप ॥ ___Bnd.-सवैया पुर्ष के अंक महा छवि देषहु सव के साक्षी सांति भरै लाल चरु उज्ज्वल वर्ण से हावन निरषा ही मव पाप हरे अक्षर और निरक्षर वह्म के अनुभव द्वै साक्षात करै ज्ञान अरु योग विराग के मंदिर भक्ति का मणिदोप वरै इनको निर्मल बन ममान सुभाव कहों पुनि प्ररणताई इनमें सव को भाव घटे अरु जा जेहि भाव सेा देत पुराई पानंद कंद समस्त गुणालय देषि परे मोहि साइ जानाई रानी राय महा सुष पाय अनेक वियो ऋषि x x x x (पूर्ण)