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मरीचादि तैन प्रसारिनी तैल तुवराध तैल
लेपविधि तेल मूर्छादि
अषलेषमाज्वर
अमृतादि चूर्ण क्षार पीपर
कादि चूर्ण घृताचारणं प्रव प्रतीसार
इच्छाभेदा ग्स लोहा साधन
APPENDIX 11.
मरम
गर्भ स्थिति
नूपदंत गजकेसर रस गर्भरक्षा
कंपज्वर
स्वांम औषधि
सिर दर्द को औषधि अग्निमन्द चूरन
गर्मी का इलाज
नेत्र अंजन
गर्भ निवारण
कुच कड़ा करने का उपाय भग संकोचन
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No. 154. Krishna Chandrika by Rāma Prasāda. Substance—Country-mado paper. Leaves - 76. Size - 64 inches × 5 inches. Lines per page — 16. Extont- 1140 Ślokas. Appearance—Old. Character--Nagari. Date of Composition— Samvat 1779 or 1722 A. D. Place of Deposit-Ramana Lala Hari Chandra Chaudhari, Kósī, Mathurâ.
Beginning. - खरभतः - प्रारम्भ के ढंग पृष्ठ नष्ट हो गये है । +
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अथ धृष्ट लक्छन || दोहा ॥ षिजत्रा जानै पांड ॥ सैौ ॥ गारो गुर लौ पात ॥ मिसरो मानै मार कौ ॥ धृष्ट सु जान्यों जान ॥ २५ ॥ यथा ॥ सवैया ॥ मेट दई मरजाद सत्रै छल छिद्र नही मन घात लगायो || पानी गया दर आपिन की कहा होता है ऊपर बात बनाया | मार न गारी की सोच कछू कोऊ काट करी कहुं नैक न भायैौ ॥ म्वान की पूछि की टेढ़ी सुभाउ सेा लाष करो नहीं छूटै छुटायो ॥ २६ ॥ अथ उपपति लछन || दोहा ॥ उपपति ताही सेां कहत जो रति है पर वाम ॥ विविध भेद करि तियन से || साधै अपनों काम || २७ || दोहा || तीन भेद उपपत्ति के ॥ पगे सबै सुष साज ॥ लछित गुपत विदग्ध है || बरनत सुबुधि समाज || २८ ॥ अथ लछित लछन || देTET || लकत नायक की कहत ॥ ग्रंथनि लछन रीति ॥ केाऊ लषि पावै जबै ॥ जाकी प्रीति प्रतीति ॥ २९ ॥
End. - दाहा ॥ सुकवि पगन वंदन करौं रज तिनकी मिर धारि ॥ चूक होइ जेा ग्रन्थ मैं लीजै सुबुध सुधारि ॥ ४१२ ॥ देाहा ॥ काइथ कुल श्रीवास्तव