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End. - सामान्या प्रागतिका चंबिया फर की हग्यो मन मै लरकी लर मोतिन मालन की वहियां लहको सहकी कुचहूं वहकी गति जासु मगलन की गो उमगै भरि ग्रामन को हरि है गति ताप करालन को मोतिन जालन गुंफित मालन दी है लालन लालन को ।
Subject. - नायिका भेद
APPENDIX II.
No. 149(a). Vijaya Sudhanidhi by Rama Kavi. Sub. stance-Country-made paper. Leaves-140. Size-9" x 6" Lines per page-12. Extent-1,900 Ślōkas. AppearanceOld. Character — Nāgari. Date of Manuscript-Samvat 1903 or 1846 A. D. Place of Deposit-The Public Library, Bharatapur State.
Beginning.—श्री मन्महागणाधिपतये नमा ॥ यथ विजय सुधानिधि लिख्यते || श्री छप्पे ॥ मुष प्रसंस शसि मोर पक्ष्य अवतंस परम प्रिय ॥ विप्र चरण कौस्तुभ उदार उर वर सेाभित श्रिय ॥ गोपिम के द्रग कमल काम मय सित चर्चित तनु ॥ गोप गउन के मध्य बसत जनु लसत कुसुम धनु ॥ गावत वजात सुष वेणु सुर सप्तगग संगीत लय ॥ अवतार उदार अपार छवि जयति जयति श्रो कृष्ण जय ॥ १ ॥ दोहा ॥ नारायण नरवर बहुर वाणी व्यास मनाय ॥ रच्या ग्रन्थ भाषा चवै ॥ वृजपति प्रायस पाय ॥ २ ॥ जनमेजय उवाच ॥ वध्या करण सें जवै समर भूमि मै पथ्थ ॥ अल्प वचे कौरव कहा करत भए सु समर्थ ॥ ३ ॥ पांडव सेना का प्रवल विजय काल कुरुराय ॥ लषि विक्रम द्विजवर वह कोना कहा उपाय ॥ ४ ॥ यह सुनिवे का हर्ष महि कहहु कृपा करि तात ॥ तव मुष पंकज त सुनत कथा न करण प्रघात ॥ ५ ॥ वैशंपायन उवाच छंद पधरो ॥ तव करण गयासुरपुर मकार ॥ धृतराष्ट्र तनय मन कियौ विचार || प्रति भयौ साकनिधि मैं निमग्न ॥ हत बंधु पराक्रम मान भग्न |
End. – शहा | मैं तिह संग्राम सैौ भज्या तात दल तार ॥ प्राप्त काल चिंतक महा मैं पुनि कहूं बहारि ॥ छंद दुवै ॥ श्री वलवंत भूप वनरक्षक हुकम हरषि के दोनों ॥ तिह हित कविवर रामलाल यह विजय सुधा निधि कीना ॥ वरण विलास ललित पद या मैं रुचिर वीर रस सायै ॥ गु ( उ )नतीस पै तरग दुयोधन तान प्रवेश वष न्यों । इति श्री मन्महाराजाधिराज राज सवाई बजेन्द्र वलवंत स्यंघ हेतवे राम कवि विरचिते विजय सुधा निधि एकोनत्रिंश तरंग ॥ २९ ॥ लषतं व्यास स्यैव कस प्रबैगढ़ मध्ये ॥ मितो मार्ग सिर शुक्ला सप्तमी बुद्धवा' ॥ संवत १९०३ ॥ का ॥ श्री गोवर्धन नाथ सदा सहाय ॥ श्री शुभभवतु || मंगल ददातु || श्रीरामचन्द्राय नमः ॥