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रामचरम रवि प्रभा ते रवि मूरति लषि जाइ ।। तिमि निज रूप प्रकाश ते राम रूप दरसाइ ।। ६ ।। रामचरन सतसंग बिन संत विशुद्ध न कोइ ॥ जिभि जवाहिरी संग बिन नहि जवाहिरो होइ ॥ ७ ॥
End. - जक्त तजे प्रभु भजे विन मिटै न जिय को पीर ॥ रामचरन विनु धनुष के तजे लगै किमि तीर ॥ ९७ ॥ लोक लाज अभिमान सुष तब लगि ह्रिदय न राम ॥ रामचरन नृप क्यों वसै जह मलीन लघु धाम ॥ ९८ ॥ लेोक लाज के अगिनि में धर्म कर्म जरि जाइ ॥ रामचरन रघुनंद की करुना वारि वुझाई ।। ९९ ।। प्रस करुना करिहा कबहुं रामचरन पर राम ॥ तव स्वरूप जल मोन मम मरा विछोह न नाम ॥ १०० ॥ यह दृष्टांत वोधिका सतक विरह को अंग ॥ रामचरन तिहि समुझि रहु राम न छोड़हिं संग ॥ १०१ ॥ इति दृष्टांत वाधिका विरह लक्षन वरननो नाम रसिकभाव पोषन दरसावना श्री महाराज भक्ति रसिकाधिराज परमान भव प्रकास मनि कामनिधि श्री रामचरण विरचितायां पंचम सतक समातम् ॥
APPENDIX II.
Subject. - पृष्ठ १-५ लक्षण निरूपण
५- ११ नीति, भाव उपासक परत्व आदि वर्णन ,, ११ - १६ वैराग्य वर्णन
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१६- २१ रामनाम महिमा और अर्थ वर्णन
२१ - २४ रसिकभाव प्रदर्शन तथा विरह लक्षण वर्णन
No. 143 (6). Kavitāvalī Rāmāyana by Rāma_Charaya Dasa. Substance-Foolscap paper. Leaves-153. Size - 9" x 5". Lines per pago-9. Extont-- 2,800 Slokas. Appearance--New. Charactor -- Nagari. Date of Manuscript --Sanvat 1972 or A. D. 1915. Place of Deposit — Sad Guru Sadana, Ayodhya.
Beginning.-— श्रीगणेशाय नमः ॥ श्रीसद्गुरुचरणकमलेभ्यो नमः ॥ श्री सीतारामाभ्यां नमः ॥ देाः ॥ वन्दि चरण सिय प्रश्न करि कहहु गुरू निर्वाह ॥ सुमिरि राम सुचि संत के सुनु रहस्य प्रवगाह ॥ १ ॥ अधिकारी कहि ग्रंथ जा विषय राम सनवन्ध ॥ दास प्रयोजन भजन दृढ़ रामचरण चासन्ध ॥ २ ॥ छप्पय छन्द ॥ सीताराम ॥ अवध क्षीरनिधि उदय चन्द श्रीराम प्रसाद स ॥ पूरण प्रेम पियूष नेम यम युग कुरंग वस ॥ सुयश प्रकाश मयूष वचन कुमुदन चकोर जन ॥ संत गुरु भगवंत भाव यक सम सोतल मन ॥ करि ग्रापु सरस सव विधि उभय श्री रघुनाथ प्रसाद गुर ॥ प्रभु युगल पदुम पद वन्दि रज रामचरण जो कहीं फुर ॥ १ ॥ वन्दे श्रोसतगुर रहस्य संतन के भावों ॥ चनमादन सेा करौं