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________________ 290 APPENDIX II. छप्पै ॥ नाभि कवल विधिविष्णु की ज्यो अग्र नाम नाभा भयो। उन गुरु माशा(पा)य रचि ब्रह्मांड वनायो । इन गुरु आज्ञा पाइ संतन को तरनो गायौ ॥ च्यारि जुगनि कं भक्त की गुथी माला ॥ सुरति सूत में पाइ विराजे कंठ विसाला ॥ लघुनंदन प्रचिरज कहा सीतापति जिन पै जय ॥ नाभि कवल विधु विष्णु को ज्यों अगृ नाम नाभा भयो । लिपतं वैष्णवदास लालविहारी गधावल्लभी पठनार्थ पाप से पुरनगर मध्य पुस्तक लिघ्यो मिती जेप मुद्द ॥ १३॥ संवत १८३१ ॥ वाचे मुनै ताको जै राधा कृषण वचै॥ Subject.- प्रियादास को नारायन दास कृत भक्तमाल की टीका ॥ No. 139. Chaha Veli by Priyi Dasn. Substance-Yellow paper. Sheet-1. Size-15" x 10". Lines-67. Extent-52 Slokas. Appearance-Old. Character---Nagari, Place of 1eposit-Goswamii Radha Charana ji, Brindabana, Mathurii. Beginning.- श्रीराधारमणा जयति ॥ अथ चाहवेली लि०॥ हां वृषभानु किशोरी जी वन हा वजराज किशोर ॥ वह तो बिंब प्रार्थना पेहले यह प्रतिबिंव हिलेर १ हा हा राधे रसिक मुकट मणि हा हा कृष्ण विहारो हा हा लाइलि कुमारि लड़ेती नंदलाल हितकारी २ हा हा श्री वृषभानु नंदिनी हा हा कीरति प्राण हा हा लक लड़ी गुग्ण मंदिर सुंदर श्याम मुजान ३ हा हा नवल किशोरी श्यामा रूप घटा सुकुमार हा हा राम रसिकिनी भामिनि मोहन प्राण मधार ४ हा हा रसिक प्राण धन जोवन हा हा वृन्दावन रानी हा हा कीरति दा कुल मंडन हा हा लालन दानी ५ हा हा अति अलिवेली नागरि हा वृषमानु दुलारी हा हा प्रेम मयी रस मूति हा हा श्री गिरिधारी ६ हा हा मृदु पद पंकज साहन चित्रित जावक रंग हा हा श्री नख चन्द्र चन्द्रिका नाना उठत तरंग ७ हा हा सुखनिधि वदन चकारी हा हा तनु छवि गारी हा हा रस सागर गुण पागर सांवल रंग चितचोरी ८ हा हा परम प्रिया पिय प्यारी हा हा सव मुखदेनी ॥ हाहा नंदलाल रंग भीने खंजन गंजन नेनी ९ हाहा गाविंद लाल राधिके हा हा गोपीनाथ हा दा मदन मोहन मन मोहन विहरत परिकर साथ ॥१०॥ End.-हाहा रसिक समाज मुना सव जे वृन्दावन वासी देउ तनक रस तुम रस भोगी विहित रूप विलासी ४८ यह तो चाह वेलि उपजाई प्रियादास लगि पास में कटाक्ष भये फल लागे सफल करो वनवास ४९ हा हा वड़ी बात मुख ने सुक कहत भयो डर भारी मासे निपट न्यून जनह को दियो न मां अनुसारी ॥५०॥ दीना वहुत उदार शिरोर्माण तउ लोभ उपजाई ॥ दंउ सुदउ उदार शिरोमखि अपनी जान बड़ाई ५१ कवित्त वृन्दावन रानी सुना माहन महानी कहां कहां मुम्बेवानी सीस रतन सुजान में देवकी अवधि दई इति सुयात्रता भई
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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