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________________ APPENDIX II. 289 को ध्यान मेरे नाम मुष गाइये ॥ ताहो समै नाभा जू ने आज्ञा दई लाइ धरि टीका विस्तारि भक्तिमान को सुनाइये | कीजिये कवित्त बंध कुंद प्रति प्यारो लागे जगे जय माहि कहि वानो विरमाइये || जानौं निज मति मै पै सुन्यौ भागवत सुक डुमनि प्रवेश किया से हो कहाइये ॥ १ ॥ टोका को नाम स्वरूप वर्नन ॥ रचि कविवाई सुदाई नागै निपट सुहाई और सचाई पुनिरुक लै मिठाई है ॥ काव्य की बड़ाई निज मूषन भलाई होत नाभा जू कहार तातै प्रेट के सुनाई है | हदै सरसाई जो पे सुनिये सहाई यह भक्ति रस वाधनी सुनाम टीका गाई है ॥ २ ॥ अक्षर End. - भकदाम जिन जिन कथी तिनको झूठनि पाइ ॥ मे मति सारु द्वै कीना सिला बनाइ १३ काहु के केवल जोग जग्य कै कुन करनी की आस ॥ भक्त नाम माला अगर उर वसैौ नारायन दाम ॥ १४ ॥ इति श्रीभक्तमान श्री नारायनदास जू कृत मूल समाप्ता ॥ शुभमस्तु ॥ अथ टीकाकर्ता के इष्ट गुरुदेव कवित्त वर्नन ॥ रंग भवन में राधिका रवन वसै लसै ज्यों मुकुर मध्य प्रतिव्यव भाई है ॥ रसिक समाज मै विराजे रसराज कहै चहै मृष सव फूलै सुष समुदाई है || जनम हरिलाल मनोहर नाम पाया उन्हू को मनहरि लीनो ताते राई है ॥ २४ ॥ इनही के दास दास दासा प्रियादास जानौ तित लै वषाना माना टीका दाई है | गोवर्द्धन नाथ जू के हाथ मन पर जाकर करसी वास वृन्दावन लोला मिलि गाई है ॥ मति उनमान कह्यौ लह्यो मुष संतान के अंत को न पावै जाई गावे हिय आई है ॥ धरि वढ़ि जानि अपराध मेरो क्षमा कीजै साधु गुन ग्राही यह मानि मै सुनाई है ॥ २५ ॥ कोनी भक्तमाल सुरसाल नाभा स्वामो जूठी तजी जोवजाल जग जनमन पाहनी || भक्ति रस वाधनी टीका मति साधनी है वाचत कहत अर्थ लागे अति साहनी (1) जो पै प्रेम लक्षना को चाह प्रवगाह याहि मिटै उर दाह नैक नैननि जानी || टीका अरु मूल नाम भूल जात मुनै जब रसिक अनन्य मुष्य हात विश्वमोहनी || २६ ॥ नाभाजू की अभिलाष पुग्न ले किया मैं तो ताकी सापि प्रथम सुनाई नोकै गाइ कै (1) भक्ति विस्वास जाकै ताही सैा प्रकास कीजै भोजै रंग हिया लीजै संतनि लडाइ कै (1) संवत प्रसिद्ध दस मात सत उन्हतर फालगुन मास वदि सप्तमी बिनाईकै (1) नारायन दास सुषरास भकमाल लै कै प्रियादास दास उर वसैा रही छाइ कै २७ प्रागनि जरावा लै के जल में वुड़ावो भावै सूली चढ़ाव घोरि गरल पिवाइवा (1) वोछू कटवावा कोटि साप लपटावा हाथी आगे डरवावै। एती भोत उपजाइवी (i) सिंघ पे पवावैा चाही भूमि गड़वावा तीषा विधवावा मोहि दुष नही पाइवी (1) वृज तन प्रान काहू बात यह कान करा भक्ति से विपताका मुष न दिषाइवी ॥ ६२८ ॥ इति श्री भक्तमाल रसबोधनी टीका श्री प्रियादास कृत समाप्ता ॥ श्री सीता राधा श्रीराम कृष्ण अनंत कोटि वैवाय जयति जयति जै श्री राम कृष्ण कहना वाचै तिनको इतनोग्य है ॥ १ ॥
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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