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APPENDIX II.
ताको मिटय सुघर (क)वीस्वर होय ॥२॥चौपाई इक वीस सै अरु असो कहि देव ॥ दोहा यामें पंच सत ॥ पैंतालीस गन लेव ॥३॥ अष्टादश सत तीस ो तीन सु संवत जान ॥ भादव कृष्ण त्रयोदशी मंगल मंगल खान ॥ ४॥ धर्मसिंह भूपाल जह सुरसरि सहिर अनूप ॥ पूरन किया निधान तह ॥ ग्रंथ सगुन गुन रूप ॥ ५॥ इति प्रभाव वर्गः तिसतिमः ॥ इति भाषा वसंतराज निधान कृत संपूर्ण शुभमस्तु । संवत १८३७ वर्ष चैत्र मासे कृष्ण पक्षे सप्तम्यां तिथी वृगुवासरे श्री गंगा तीरथ अनूप नग्रे औदिच ज्ञाति गुरजर दुवे शिवरामेन लिखितं इदं पुस्तकं । शुभं भूयात् ॥ यादृशं पुस्तकं दृष्टा तादृशं लिखितंमया ॥ यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दापो न दीयतं ॥ श्री गम सहाय ॥
Subject.-शकुन शास्त्र ।
Note.-निधान अपने बड़े भाई के सहित अनूपशहर के सूर्यवंशी राजा तारासिंह के शरणागत हेा कर रहे ॥ राजा ने इन दोनों का अच्छा सम्मान किया था ॥ तारासिंह की मृत्यु होने पर इनके पुत्र धर्मसिंह राजा हुए। इन्होंने भी इन दो भाइयों का अच्छा सम्मान किया । कवि ने यह पुस्तक पद्य में राजा धर्मसिंह को ही आज्ञा से बनायी थी। उस समय राजा धर्मसिंह के मन्त्री एक कायस्थ केवलकृष्ण थे जिनके कहने से राजा ने कवि को शकुन शास्त्र की पुस्तक लिखने की आज्ञा दी थी ॥ पुस्तक के प्रारम्भ में कवि ने राजा के कई पूर्वजों का भी कुछ वर्णन किया है, साथ ही साथ अपने पूर्वजों का भी परिचय दिया है । यथा:राजा को वंशावली
कवि की वंशावलीअनीराय-ये दिल्लीपति
जगन्नाथ तत्कालीन सुलतान की सेवा में
धरमदास रहते थे, जिनके पुत्र का नाम
नन्द राम
सूरत सिंह
घासीराम निधान
छत्र सिंह
कवि के गुरु का नाम-सुषानंद था।
अचल सिंह तारा सिंह धर्म सिंह