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APPENDIX II.
मोचन विसाल माल मन में कुडल मुकुट धरे माथ है। उढे पीत वसन गले में वजंती मालः संष चक्र गदा पदम लीये हाथ है । नीरोतम भणैत सब गुर संदीपन कै। तुम ही जो कहा हम पढ़े एक साथ है धोरका गए ते पीय दालट करेंगे दुर धारका के नार्थ अनेथन के नाथ है १ ___End.-बहू कहू मै जव दुसरी वार भरोसा कै मेर सरवे कस सैजक माह कु भेर चवत है चावरचांक्यः।
Subject.-सुदामा चरित्र ।
Note.-पुस्तक अधूरी है और है भी बहुत पुरानी । पदों के कई अक्षर छुटे हुए से प्रतीत होते हैं। लिखावट शुद्ध नहीं है। अतएव बड़ा ही कठिनता से पढ़ी जाती है। ___No. 125. Nayana Sukha by Nayana Sukha. Substance-- Country-made paper. Leaves-99. Sizo-g" x 51. Lines per page-20. Extent-2475 Slokas. Appearance-Old. Character--Nāgari. Place of Deposit-Chiranji Lāla Vaidya Jotishi, Sikandarābād, District Bulandasahar.
___Beginning.-श्रीगमजी श्रीगणेशाय नमः ॥ अथ नैनसुष लेषतें ॥दोहा॥ सिव सुत पे प्रणवों सारद सिधि देहि ॥ कुमति विनासन सुमति कर मंगल मुदित करेहि ॥१॥ अलप अमूरति अलष गति किंतिहं न पायो पार ॥ जार जुगल कर कवि कहै देहि देहि मति सार ॥२॥ वैवद(वैदक) ग्रंथ्य सम मथन करि रिच्या भाषा पांन ॥ अरथ दिषायो प्रगट करि ॥ औषद रोग निदान ॥ ३ ॥ मम मति अल्प जु कृत है कवि गम परम अगाध ॥ सुगम चकित्सा चित रचवै मा सवै अपराध ॥ ४॥ वैदा मनोत्सव नाम धरि देष ग्रंथ सुप्रकास ॥ केसवदास पुत्र नैनंमुष भाषा करियो विलास ॥५॥ अथ मनसा लछन कहुं देष ग्रंथ मत साइ ॥ पुनी जांनो अनुभाव हो। जैसि मम मति होइ॥६॥ अथ नाड़ी परीष्या॥ दोहा॥ करु अंगुष्ट जु मूलही देषहु नसा अकार ॥ जानहु दुष सुष जीव को पंडित करहो विचार ॥ ७ ॥ आदि पित पुन मध्य कफ मंतजु पवन प्रधान | त्रिविध नसा लछन कहुं जानह वैद्य सुजान ॥ ८॥ मोडक काग कुलिंग गति पीत नसाह भाइ हंस मयुर कपोत कफ नाग उलौका वाइ ॥९॥
End.-अथ नीवु पाक ॥ निवु ८०० आक्षेका गही वड़े रसीले निवु का रस गुण पुरांना दुनो ऐकत्र करि अग्नि पर पचावै भाग पाठ ८ तव दारू औषध में लै सिंधव टं ४० जवाषारटं ९० सुहागो ट २५ नवसादर टं २५ प वस्तु एकत्र करि प्रौटावै काच को कपि मध्य राषै टं १ षाइ गोला तिलि कालिजा फोहा