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APPENDIX II.
चालीस ॥ ३॥ राम नाम जस रहित जे विद्या व्रत तप दान । ते दुखप्रद सव जानिये कह जु वेद पुरान ॥ ४ ॥
___End.-अथ सुमासुभ विचार ॥ अष्टादस जू सत अरु उनतीस मिलाई भादा चौदसि वार गुरु कृपा पक्ष सुषदाई ॥५०॥ इति नारायन दास कृत छंद सार संपूर्ण अथ गन स्वरूप ॥ अथ अन्य ग्रंथे द्विगण विचार ॥ मगन नगन द्वै मित्र हैं भगन यगन द्वै दास ॥ सगन रगन द्वै सत्र हैं जगन तगन समवास ॥ छप्य ॥ ५१ ॥ सिद्धि मिले द्वे मित सेवक जय जानहु ॥ मीत उदासी मिलित छ लकन मानहु मिलै मित्र अरु सत्रु वहुत पीड़ा उपजावहि ॥ दास मित्र का मिलत काज सिधि को नर पावहि ॥ हसकल नास द्वै दास जंह हानि दास सम के मिले ॥ हरि राम भनत ह हानि सहि दास सत्रु जा द्वै मिले ॥१॥ उदासीन अरु मीति मिले साधारन जानहु ॥ सम सेवक तें विपति दप्य सम निरफल मानहु ॥ सम परि हात विरोध सून्य फल सत्रु मित्र जंह ॥ रिपु सेवक तियनास सत्रु सुम मिले हनि लहं ॥ जहं परत जानि रिपुगन युगल परतछ प्रभु हरना जु वह ॥ कवि विचारि गनि गन धरहु हर x x x x मन भय राजा चारि गन सुभ फलदायक हाइ ॥ रजत सगन ए असुभ फल दायक जानिये साय ॥ १॥ हज घ गण ख म घर गाठ ये अछर असुभ के दांनि || कवित आदि कवि जन क भूलि न कवहूं पानि ॥२॥ इति पिंगल छंद सार ममाप्तं नारायण दास वैषणव कृत । शुभं भूयात् । आषाढ़ माशे सुकल पक्षे दशम्यां चन्द्रवासरे अलेषि ज्वालादत्तन पठनाई ममापि च संवत् १९२५॥
Subject.-पिङ्गल।
No. 123(b). Chhanda Sāra by Nārāyaṇa Dāsa. Substance-Country-made paper. Leaves-7. Size 103" x 51". Lines per page-12. Extent-180 Slokas. AppearanceOld. Character-Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshinana Kota, Ayodhya.
Beginning.-श्रीसीतारामाभ्यां नमः अथ छंद कवित्त को विषै ॥ दोहा ॥ श्री हरि गुरुपद कमल को वंदि मनोग्य प्रकास ॥ छंद सार यह ग्रंथ सुभ किया नारायन दास ॥१॥ प्रथम कहे गुरु लघु वरन कुंदन पुनि गन रीति ॥ छंदन के लछन कहे उदाहरन हरि प्रीति ॥ २॥ पिंगल छंद अनेक है. कहे भुजंगम ईस ॥ तिन तै लियै निकार मैं द्वादस अरु चालीस ॥ ३॥ राम नाम जस रहित जो विद्या व्रत तप दान ते दुषप्रद सव जानिये कहे जु वेद पुरान ॥ ४॥ हरि जस रहित जु काय हू अंत न पादर देत ॥ उदाहरन हरि नाम जस मिले कहे एहि हेतु ॥५॥ अथ लघु गुरु लछन ॥ मात्रा रहित सु जे वरन ते सव लघु करि जान पीछे कि कुमात्रा