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APPENDIX II.
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पढ़ावत वांचते ॥ सुमरत ग्रघ तम नास ॥ भवि जन सुभ संचय लहै । पावे बुद्धि प्रकास ॥ ४० ॥ पढ़ें पढ़ावै जे सुखै ॥ वांचै मन हरषाय देव धरम गुर भारती । तिनकी करहु सहाय ॥ ४१ ॥ सवैया ॥ ३१ ॥ मूलाचार मूल ग्रंथ प्राकृत सुभाषा मय रच्यो वदर केर स्वामी साधु सुख रहै ॥ ताको वृत्ति वसु नंद सिद्धान्त चक्रवरती रची देवभाषा मय अर्थ बहुसार है ॥ संवत अठारह से अठासी मास कातिग मै स्वेत पक्ष सप्तमी सुतिथि शुक्रवार है ॥ टोका देश भाषामय प्रारंभी सुनंद लाल पूरन करो ऋषभ दास सनिरधार है ॥ ४२ ॥ इति श्री मून वदर केराचार्य विरचित मूलाचार प्राकृत ग्रंथ की वसुनंदि सिद्धान्त चक्रवर्त्ती कृत आचार वृत नाम संस्कृत टीका के अनुसार यह संक्षेप भावार्थ मात्र देश भाषामय वचनिका समाप्तं भूयात् ॥ संवत एकोनविशंति रात द्वौ अधिकं ॥ कार्त्तिकादि प्रतिपद्यां गुरौ ॥ श्री ॥ अथ दाहा ग्रंथ के स्थापित को लिष्य ॥ तेः पुरजा नगर मुहावना तहा जिन धर्मी लोग: अग्रवाल के वंस में गर्ग गोत सुमनेोगः : १ : मानीराम सुजानियैः नेत राम सुत जासु तासु मातनें ग्रंथ यह लिषवाया सुषरास २ मुलाचार महान है मूल ग्रंथ मनोग गुन कौ कथन विसेष है श्रावक सुष संयोग ॥ ३ ॥ श्री श्री श्री ॥ १ ॥ ग्रंथ निर्माण | दोहा ॥ जा कारण इश ग्रंथ की दंइ वचनका रूप । भाषा की रचनां भई जामै अर्थ अनूप ॥ २ ॥ विन कारण कारज नही ॥ सा कहिये प्रव मित्त । सा धर्मी जन वोधियो जिनका हृदय पवित्त ॥ ३ ॥ चैापाई ॥ देश ढुंढारह जैपुर नांम ॥ नगर वशै प्रति सुष को धांम । धोर वीर गंभीर उदार । नृप जय सिंघ गुण आधार ॥ ४ ॥ राज करै मव को सुषदाय ॥ प्रजा रही अति सुख में छाय || तिन के अमर चंद दीवान | जिन धरमी गरमी गुणवान ॥ जे श्रुत रुचि हिरदे वहु धरै ॥ पठन पठावन उद्यम करै ॥ वड़ी शहेली मै अभिराम ॥ जाति छावड़ा जयचंद नाम X X तिन समतिन के सुत भये । वहु ज्ञानी नंदलाल ॥ X X कहा दीवान प्रवीन ॥ X अनुयोग की || भाषा है सुषकार ॥
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x तोनू हो तव उद्यम भाषा तो चंद जरिवाल ॥ १७
करण लगे नंदलाल || मनुलाल अरु उदय चंद | मणिक नंदलाल तिनसे कही भाषा लिखी वनाय ॥ x
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पूरन पट अधिकार कराय || पंदरह गाया अरथ निषाय || शोलह अधिक पांच सै कही ॥ x * हंसराज भूपाल के वासी कारन पाय || आये जैपुर नगर मैं तिनकुं धरम सुहाय ॥ २३ ॥ जाति निगात्या जासकी ॥ ऋषभदास तमु नांम ॥ शोभाचंद सुत देव गुरु श्रुत रुचि को सुमधाम ॥ २४ ॥ जयचंद अरु नंद लाल को ॥ संगत करी विशेषि ॥ x x संघही अमरचंद दीवान x X ऋषभ दास पुनि दुजो जानि ॥ तिनसेो हंसराज नित कहै ग्रंथ वचन का पूरन वचै ॥ x . X शोधन करै सुमुन्ना लाल X • X
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