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APPENDIX II.
Raghunandana Prasāda Pāțhaka, Village Sirsā, Tahsil Mejā, District Allāhābād.
Beginning.-श्रीरामचंद्रायनमः ॥ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुदेव महेश्वर गुरुदेव परब्रह्म तस्मै श्री गुरुभ्यानमः॥१॥ अथ भक्तमाल लिख्यते ॥ लिख्यते को अर्थ ॥ यामै चारि वस्तु लिङगें भक्ति भक्त भगवंत गुरू तामै भगवान की सुंदरता एक राजा ने चित्रकारन्ह को कहा जथारथ भगवत रूप लिषौ ॥ दोहा ॥ लिषन बैठि जाको छवी गहि गहि गर्वगरुर भए न केते जगत के चतुर चितेरे कूर ॥१॥ युग पुतरी लों स्याम वह लिष्यो कौन पै जाय जगत उज्यारो स्यामता देवा जियहि लगाय ॥२॥ छवि निरषत अति थकित हग पुतरी वृज वाम फिर न उठी वैठी चिहठी कियो गौर तन स्याम ॥३॥ मोहन जग व्यवहार तजि वनिज करो यहि हाट पोय पदारथ पाई ये जिय कौड़ो के साट ॥ ४॥ प्रेम चितेरे को सुमति वरनि कापे जाई मोहन मूरति स्याम को हिय पट लिग्वि वनाई ॥ ५॥ तोक्षण वरुण वान सा वेधा हियो दुसार जाल रंध्र कीनो मनो प्रेमी घट अंधियार ॥६॥
End.-कृष्ण वंसो वजावते रहै ए नजित हाय वैठो ॥ तव श्री कृष्ण अघोर सुर वंसो वजाई व्रजगोपिकनि सुनी राधिका ललिता विसापादि गोपी माई रास मंडन्न रच्या राग रंग नृत्य गान आलाप आलिंगन संभासन भया उहाई सर मै जल कोड़ा स्नान गापोन को कुच कुंकुम केसर छूट्यो सा गोपी चंदन भयो गोपो तलाई भई व्रज प्राप्ति ताको मषन वरहुं तवढं ज्वाला पिंजरोति घ्यवस्थिति नशारी चिंता विमुष जन सेवासवेसशं ईति श्री भक्तमाल नाभाजू कृत।
Subject.-भक्तों का वर्णन, करीव २०० भक्तों का वर्णन किया है और करीव २ सभी प्रसिद भक्तों के नाम इस ग्रन्थ में पागए है, यथा सूरदाम, तुलसी दास, वल्लभाचार्य, कवीर दास आदि। ___Note.-नाभाजू कृत भक्तमा न के संवत का पद्य प्रियादास को टोका में यों है। "संवत प्रसिद्ध दस सात सत उनह तर फाल्गुन मास वदि सप्तमी विताय कै॥"
No. 118. Bhāgavata (Skandhas 1st to 12th except 1, 5, 9, 10) by Nāgari Dāsa. Substance-Country-znade paper. Leaves-523. Sizo-12" x6". Linos per page-10. Ex. tent-About 16,000 Slokas. Appearance-Old. Charac. ter-Nāgari. Date of Composition--Samvat 1858-1863 or A. D. 1801-18C6. Place of Deposit-The Hindi Sahitya Samiti, Bharatapur State.