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APPENDIX II.
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Beginning.-श्रीगणेशाय नमः ॥ अथ द्वितीय स्कंध भाषा लिष्यते ॥ श्री शुक उवाच ॥ दोहा ॥ भली प्रश्न कीनै तुम न लोकन हित कत भूप ॥ आत्म तत्व ज्ञाता नरन सुनिवे काज अनूप ॥ १॥ सारठा ॥ मुनिवे काजै वात सहसनि भूपति जगत मैं ॥ गृह मधि ही दरसात आत्म तत्व याकै सुनत ॥ २॥ छप्पै ॥ निदा हरियत सैनि वहुरि मैथुन करि त्योंही ॥ दिवस गेह के अर्थ कुटुंव भर पेाषन ज्योंहो ॥ तिय सुत अपनी सैन सकल मिथ्या यह पाहो ॥ तिन मधि अधिक प्रमत्त मृत्यु देषत पुनि नांही ॥ सुनि भारत सव को पातमा हरि ईश्वर भगवान जो॥ जग सेा चाहत अभय नर जो सरवन कीर्तन करहि सा ॥३॥दोहा॥ सांष्य योग निष्ठा धरम का फल यह ही जानि ॥ हरि सुमरन जो पंति मै जन्म लाभ भये मांनि ॥ ४॥ निगुन हूं मैं थिति सुमुनि विधि निषेद ये त्यागि ॥ तोऊ श्री हरि के गुन कथन भरे रइत अनुराग ॥५॥ तोमर ॥ भागवत नाम पुरान ॥ यह ब्रह्म संमत जान ॥ मैं पठ्यौ द्वापर आद मुष पिता व्यास जगाद ॥६॥चौपाई॥ मैं निर्गुन निष्ठा चित दोनों । कृपण कथा तउ चित हरि लीनों ॥ मैं अपने पितु के मुष सव तव ॥ पढ़ी कहत है। तो सै अव सव ॥ वामैं जो काई सर्दा करई ॥ तिहिं छिन मति हरि मैं अनुसरई ॥ जिनि जग सै निर्वेद म पायौ ॥ अकुतोभय जिनि क उर भायो ॥ ८॥ दोहा । वहुत भांति जोगी जननि निने कोनै भूय ॥ नान कोरतन कृष्ण को साधन परम अनूप ॥२॥
End.-दोहा ॥ वासुदेव भगवान के ॥ पद वंदे सिर नाय ॥ मुक्ति हेत सब नरन के ॥ जिनि यह दयौ वताय ॥ १५ ॥ सारठा ॥ ब्रह्मरूप सुकदेव ॥ तिनकों हैंवंदन करौं ॥ तिनि यह सगरौ भेव ॥ नृपति परीछत की दया ॥ १६ ॥ दाहा ॥ जनम जनम मधि चरन तव ॥ भक्ति मु मा उर होइ॥ श्री शुक मेरे नाथ तुम ॥ कृया कोजियै साय ॥ १७ ॥ नाम कीरतन करत जिहि ॥ पाप सकल नसि जांहि ॥ दुष नांसन परनाम जिहिं ॥ तिहिं हरि वंदे पाय ॥ १८ ॥ कविरुवाच ॥ दोहा॥ श्री सुक चरनन दास के ॥ चरन सरोज मनाय ॥ प्रासय श्री भागवत मैं ॥ भाषा कोयौ गाय ॥ १२॥ जब लग धर अंवर अटल ॥ तव लग चिर जुत वंस ॥ राजा राव प्रताप भुव ॥ राज करो प्रभु अंस ॥ राजा राव प्रताप को ॥ छाजू गम दिवान ॥ संतति संपति जुत सुनित ॥ हाउ तेज सम भांन ॥ इति श्री भागवते महापुराणे द्वादश स्कंधे भाषा राव राजा श्री प्रताप सिंहस्य दीवान साह छाजू रामार्थ नागरीदासेन कृतं नाम त्रयोदसाध्याय ॥ १३ ॥ लिषतं तुरसी राम ॥ लिषायतं श्री कुंवर जी श्री कृष्णवल्लभ श्री चिरंजीव ॥ संवत १८५८ मिती जेष्ट सुदा २ श्री रामजी वैरीगढ़ मध्ये पठनार्थ शुभं भूयात् सदा सुषदाई श्री राधा कृष्ण दिन प्रति घरी घरी