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________________ APPENDIX II. 261 Beginning.-श्रीगणेशाय नमः ॥ अथ द्वितीय स्कंध भाषा लिष्यते ॥ श्री शुक उवाच ॥ दोहा ॥ भली प्रश्न कीनै तुम न लोकन हित कत भूप ॥ आत्म तत्व ज्ञाता नरन सुनिवे काज अनूप ॥ १॥ सारठा ॥ मुनिवे काजै वात सहसनि भूपति जगत मैं ॥ गृह मधि ही दरसात आत्म तत्व याकै सुनत ॥ २॥ छप्पै ॥ निदा हरियत सैनि वहुरि मैथुन करि त्योंही ॥ दिवस गेह के अर्थ कुटुंव भर पेाषन ज्योंहो ॥ तिय सुत अपनी सैन सकल मिथ्या यह पाहो ॥ तिन मधि अधिक प्रमत्त मृत्यु देषत पुनि नांही ॥ सुनि भारत सव को पातमा हरि ईश्वर भगवान जो॥ जग सेा चाहत अभय नर जो सरवन कीर्तन करहि सा ॥३॥दोहा॥ सांष्य योग निष्ठा धरम का फल यह ही जानि ॥ हरि सुमरन जो पंति मै जन्म लाभ भये मांनि ॥ ४॥ निगुन हूं मैं थिति सुमुनि विधि निषेद ये त्यागि ॥ तोऊ श्री हरि के गुन कथन भरे रइत अनुराग ॥५॥ तोमर ॥ भागवत नाम पुरान ॥ यह ब्रह्म संमत जान ॥ मैं पठ्यौ द्वापर आद मुष पिता व्यास जगाद ॥६॥चौपाई॥ मैं निर्गुन निष्ठा चित दोनों । कृपण कथा तउ चित हरि लीनों ॥ मैं अपने पितु के मुष सव तव ॥ पढ़ी कहत है। तो सै अव सव ॥ वामैं जो काई सर्दा करई ॥ तिहिं छिन मति हरि मैं अनुसरई ॥ जिनि जग सै निर्वेद म पायौ ॥ अकुतोभय जिनि क उर भायो ॥ ८॥ दोहा । वहुत भांति जोगी जननि निने कोनै भूय ॥ नान कोरतन कृष्ण को साधन परम अनूप ॥२॥ End.-दोहा ॥ वासुदेव भगवान के ॥ पद वंदे सिर नाय ॥ मुक्ति हेत सब नरन के ॥ जिनि यह दयौ वताय ॥ १५ ॥ सारठा ॥ ब्रह्मरूप सुकदेव ॥ तिनकों हैंवंदन करौं ॥ तिनि यह सगरौ भेव ॥ नृपति परीछत की दया ॥ १६ ॥ दाहा ॥ जनम जनम मधि चरन तव ॥ भक्ति मु मा उर होइ॥ श्री शुक मेरे नाथ तुम ॥ कृया कोजियै साय ॥ १७ ॥ नाम कीरतन करत जिहि ॥ पाप सकल नसि जांहि ॥ दुष नांसन परनाम जिहिं ॥ तिहिं हरि वंदे पाय ॥ १८ ॥ कविरुवाच ॥ दोहा॥ श्री सुक चरनन दास के ॥ चरन सरोज मनाय ॥ प्रासय श्री भागवत मैं ॥ भाषा कोयौ गाय ॥ १२॥ जब लग धर अंवर अटल ॥ तव लग चिर जुत वंस ॥ राजा राव प्रताप भुव ॥ राज करो प्रभु अंस ॥ राजा राव प्रताप को ॥ छाजू गम दिवान ॥ संतति संपति जुत सुनित ॥ हाउ तेज सम भांन ॥ इति श्री भागवते महापुराणे द्वादश स्कंधे भाषा राव राजा श्री प्रताप सिंहस्य दीवान साह छाजू रामार्थ नागरीदासेन कृतं नाम त्रयोदसाध्याय ॥ १३ ॥ लिषतं तुरसी राम ॥ लिषायतं श्री कुंवर जी श्री कृष्णवल्लभ श्री चिरंजीव ॥ संवत १८५८ मिती जेष्ट सुदा २ श्री रामजी वैरीगढ़ मध्ये पठनार्थ शुभं भूयात् सदा सुषदाई श्री राधा कृष्ण दिन प्रति घरी घरी
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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